राघव का नाम कविता वर्तमान कवियों की कतार में सुपरिचित है और उनके मौजूदा कविता संग्रह ‘ जिंदगी की कशमकश ‘ में संग्रहित कविताओं में वर्तमान परिवेश से जुड़ी अनुभूतियां सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं और इनमें कवि बेहद आत्मीय अंदाज में मौजूदा दौर की सच्चाईयों से रूबरू होता दिखाई देता है .
पुस्तक समीक्षा
जिंदगी की कशमकश
( कविता संग्रह)
रचनाकार :- रविन्द्र राघव
समीक्षक:- राजीव कुमार झा
रविन्द्र राघव का नाम कविता वर्तमान कवियों की कतार में सुपरिचित है और उनके मौजूदा कविता संग्रह ‘ जिंदगी की कशमकश ‘ में संग्रहित कविताओं में वर्तमान परिवेश से जुड़ी अनुभूतियां सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं और इनमें कवि बेहद आत्मीय अंदाज में मौजूदा दौर की सच्चाईयों से रूबरू होता दिखाई देता है . सदियों सेजीवन के मूलतत्व के रूप में प्रेम कविता में भाव – विचार को ऊर्जस्वित करने वाले तत्व के रूप में देखा जाता रहा है और इसी अनुरूप रविन्द्र राघव के प्रस्तुत कविता संग्रह की ज्यादातर कविताओं में प्रवाहित संवेदनाओं का विवेचन भी किया जा सकता है . इस दृष्टि से इन कविताओं में समय और समाज के साथ संवाद की प्रवृत्ति का भी समावेश हुआ है
और कवि अपनी वैयक्तिक अनुभूतियों में जीवन के यथार्थ को भी समेटने के उपक्रम में गहराई से संलग्न प्रतीत होता है .
इस प्रकार भाव , भाषा , शैली में यहां कविता अपनी विशिष्ट अर्थ – वत्ता को उजागर करती है और
उसके आलाप में निरंतर सहजता से जीवन के संधान का
भाव दृष्टिगोचर होता है . रविन्द्र राघव की कविताएं अपनी इस रचना प्रक्रिया में जीवन की विसंगतियों के अलावा इसकी विडंबनाओं से खास तौर पर गुजरते हुए कविता में अपने कथ्य का प्रतिपादन तल्ख अंदाज में
बेहद संजीदगी के साथ करती हैं और आम बोलचाल की सरल भाषा शैली में लिखी गयीं इन कविताओं के गहन भाव सबके मनप्राण को जीवन की चेतना से.अनुप्राणित करते प्रतीत होते हैं –
” जिंदगी में कुछ रिश्ते जोड़ न पाया
तो कुछ रिश्ते मैं तोड़ न पाया
जिंदगी बीत गई इसी कशमकश में
यूंही जिंदगी मैं जी न पाया “
रविन्द्र राघव की कविताओं में आज के जिंदगी की मुश्किलों का बयान और इसके साथ रोज ब रोज के आईने में जीवन के बाहर – भीतर की तस्वीर में आदमी के
बदलते सूरत ए हाल का सारा फलसफा इनकी कविताओं
को पठनीय बनाता है . इस प्रकार इन कविताओं में मुख्यत: जीवनानुभवों का समावेश है और काफी कठिन दौर में आदमी के जीवन का यथार्थ इन कविताओं
के प्रतिपाद्य में प्रकट होता है . समाज के बदलते परिवेश में जीवन की आपाधापी में जिंदगी के नये सन्दर्भों को कवि ने अपनी.इन कविताओं में सहजता से उकेरा है और मौजूदा दौर में जीवन में चतुर्दिक पसरती उदासी.आदमी के अकेलेपन और उसकी राहों में दस्तक देता किसी अपरिचित समय का स्पंदन भाव विचार के धरातल पर यहां इन कविताओं को जीवन चिंतन के धरातल पर प्रतिष्ठित करता है और कविता की सहज सरल भाषा में जीवन के प्रति विश्वास और आत्मीयता के भावों के करीब सबको है लाता है . समाज में आदमी के मौजूदा जीवन और इसमें झूठ , छल फरेब , और इसमें गहराते संशय के भ्रमजाल में साफ सुथरे मन से जिंदगी की
किसी मुकम्मल तस्वीर को गढ़ने और उसे हरसंभव बचाए रखने के.संकल्प के बीच कवि अपने आत्मालाप में प्रेम के शाश्वत और नैसर्गिक स्वर के संधान से जीवन के सुख – दुख के दो पाटों के बीच तटस्थ भाव से जिंदगी के सफर में
अपने मुकाम की ओर अग्रसर दिखाई देता है और यहां वह इसे अपने मन के गहरे विश्वास और उसमें जीवन के प्रति समाये असीम प्रेम से पाने की चेष्टा में वह संलग्न है .
समाज में हर पल आदमी की रंग
बदलती जिंदगी और समय की आपाधापी में उसके भटकाव के साथ तमाम तरह की जानी अनजानी बातों के बीच किसी
सार्थक सोच के रूप में कागज के
पन्नों पर आकार ग्रहण करने वाली
इन कविताओं को यथार्थवादी शैली में लिखी जाने वाली कविताओं की नयी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए और इनमें अंतर्वस्तु के रूप में यथार्थ के साथ रोमांस का मेल भी समान रूप से हुआ है जिससे रविन्द्र
राघव की कविताएं अपनी अर्थ वत्ता को खास तौर पर प्रमाणित करती हैं –
” खुद को आईने में देखता हूं ऐसे,
कोई अजनबी को देखता हो जैसे!
मतलबी लोग अक्सर मिलते हैं ऐसे,
कोई उनसे बरसों की पहचान हो जैसे!
अपने ही लोग मुझसे मिलते हैं ऐसे,
कोई अजनबी से मिलते हों जैसे!
हम सालों से होश गंवाए बैठे हैं ऐसे,
कोई सबकुछ हमारा लूट ले गया हो जैसे !”
रविन्द्र राघव के इस कविता संग्रह के शुरू में ग़ज़लें पढ़ने को मिलती हैं और इसमें फिर कुछ शायरियां संग्रहित हैं , इसके बाद मुक्त छंद में लिखी गई कविताओं से गुजरने का मौका पुस्तक को पढ़ते हुए मिलता है . गजल प्रेम काव्य की विधा है और इसमें प्रेमानुभूतियों के दायरे में कवि के जीवन के भीतर – बाहर का संसार यथार्थ
के कई लक्षित – अलक्षित आयामों को उद्घाटित करता है और इसमें मौजूद समय का.स्पंदन अक्सर कविता में जीवन के अनेकानेक विचारणीय प्रसंगों.की विवेचना में विचलन के मनोभावों को जन्म देता है, जिसकी वजहों को जानना – समझना आसान नहीं है . समाज में जीवन के नैसर्गिक ताने – बाने.में नित पैर पसारती कृत्रिमता और रोजमर्रा के हमारे आपसी व्यवहार से लेकर संस्थागत स्तर
पर समाज में उपभोक्तावादी जीवन संस्कृति के फैलाव और.इसके दायरे में उभरते मानवीय.संकटों का बयान बाहर से सरल.प्रतीत होने वाली इन कविताओं को जीवन के प्रामाणिक पाठ का रूप प्रदान करता है . व्यंग्यात्मक शैली में कवि इन कविताओं के माध्यम से मौजूदा समय और समाज की प्रचलित प्रवृत्तियों की जांच पड़ताल से कविता में निरंतर ऐसे तथ्यों को समेटता सामने आता है जिनके अर्थ आशय में जीवन का राग विराग किसी चुप्पी और सन्नाटे के बीच हमारे मन को अचानक उदास छोड़ कर कहीं ठहर जाता है और मानो किसी मौन लय में कविता का अस्फुट स्वर यहां जीवन के
संधान की ध्वनि के रूप में उजागर हो रही हो . रविन्द्र राघव की इन कविताओं की वैचारिक मीमांसा में इस तत्व को यहां आसानी से उपस्थित देखा समझा
जा सकता है –
” तुमने जिंदगी को पर राज
और हमने तुम्हें हमराज बना डाला
जब बैठोगी सुकून से तो सोचना
तुमने जिंदगी का क्या बना डाला
कुछ दूर चले थे साथ हमारे
पर तुमने तो रास्ता बदल डाला
तुमने तो गमों को ही
तिजोरी के जेवरात बना डाला
इक बार सोचना जुरूर
तुमने अपने साथ क्या कर डाला !”
कविता में तमाम तरह के शोरगुल से दूर बेहद संजीदगी से मन की पीड़ा और व्यथा के बीच जिंदगी की छोटी – बड़ी खुशियों को भी.कवि ने बेहद आत्मीयता से समेटा है और इनमें सांसारिक जीवन में.उसके भटकाव की परिस्थितियों
के साथ उसके जीवन संघर्ष का यथार्थ भी कविता के प्रतिपाद्य में.सिमटता प्रतीत होता है !