साक्षात्कार
साक्षात्कारकर्ता: – विनोद आनंद
साक्षात्कारकर्ता का परिचय:-विनोद आनद पत्रकार साहित्यकार और लेखक हैं। इनकी कुछ कहानियां और कविताएं प्रकाशित हुई है।मूलतः स्ट्रीटबज़्ज़ और अंतर्कथा के ये सम्पादक हैं।
समीक्षक,आलोचक और कवि राजीव कुमार झा ,एमए हिंदी और जामिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हैं।मूलतः ये बिहार के लखीसराय जिला के इंदुपुर के रहने वाले हैं।दिल्ली में साहित्यकारों के संसर्ग में रहते हुए ये लेखन के क्षेत्र में पवृत हुए। इनकी हाल में हीं एक काव्य संकलन शोपिजन पर आई है।प्रस्तुत है इन से अंतर्कथा के सम्पादक विनोद आनंद से बातचीत का अंश।
प्रश्न : पिछले कुछ दिनों से आप की कविताएं लगातार विभिन्न सोशल प्लेटफार्म पर पढ़ी जा रही हैं। ऐसी कौन सी परिस्थिति है जिससे आपको कविताएं लिखने की प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: सोशल मीडिया खासकर साहित्यिक मंचों पर तमाम तरह के रचनाकारों को सामने आने का
मौका मिल रहा है और लेखक अपनी अभिव्यक्ति और उसकी प्रस्तुति के माध्यमों को लेकर सदैव दवाब में रहता है.
प्रश्न: आपकी कविताओं का बिम्ब विधान और प्रतिपाद्य विषय प्रकृति होती है, प्रकृति के प्रतीकों के सहारे आप क्या कहना चाहते हैं।
उत्तर: इसमें प्रकृति की जगह परिवेश शब्द को रखना कुछ ज्यादा उपयुक्त होगा . कविता अपनी भाव और भाषा को इसके सामंजस्य से ग्रहण करती है.हमारा भौतिक लोक अपने स्थूल रूप को जीवंत और प्राणवान बनाने के लिए प्रकृति से सतत आत्मीय संवाद करता रहता है.मेरी कविताओं में प्रकृति की उपस्थिति इसी रूप में है.
प्रश्न : क्या प्रकृति के बहाने मन की कोई टीस आप अपने भावों में समेटना चाहते हैं के धरातल पर व्यक्त करना चाहते हैं?
उत्तर : प्रकृति में जीवन के सारे रंग विद्यमान हैं और सृजन के साथ संहार की प्रकृति इसकी तमाम क्रिया प्रतिक्रियाओं में अविरल गति से घटित होती प्रतीत होती है .दुख हमारे जीवन का सबसे बड़ा सच है और कविता में जीवन की सबसे सुंदर बातें भी पीड़ा के माध्यम से ही प्रकट होती हैं.श्रृंगार के साथ करुण रस का सामंजस्य ही उसमें आनंद का समावेश करता है.शोक और शांति को आप अलग करके नहीं देख सकते और इसी तरह संयोग को वियोग की ही अवस्था के रूप में देखा गया है! कविता किसी भी भाव के माध्यम से जीवन के द्वंद्व को ही प्रकट करती है.
प्रश्न : आपकी कविताओं में प्रेम, प्रेयसी की याद, नदी और झरना के बहाने जीवन के प्रति एक अतृप्ति का भाव काव्य में निरंतर प्रकट होना चाहता है,इन सब सारी बातों में ऐसा क्या है जो आप कहना चाहते हैं।
उत्तर : समकालीन कविता अपनी संरचना में सांकेतिक बिंब विधान से कविमन के भावों को वैचारिक विमर्श का रूप प्रदान करती है और प्रकृति अपनी विविध भाव भंगिमाओं से हमारे मनप्राण को निरंतर ऊर्जस्वित करती रहती है .मेरी कविताओं में जीवन के राग विराग का भाव अभिव्यक्ति के इन खास बिंबों में इसी धरातल पर अर्थ आशय का रूप ग्रहण करता है.इसमें मन की सहज बातें स्पंदित हैं .
प्रश्न : आप एक प्रशासनिक अधिकारी के पुत्र रहे हैं, जीवन में बालपन एक सम्पन्न माहौल में बीता, फिर संघर्ष और संघर्ष से उत्पन्न पीड़ा आपकी भावनाओं को इन सारी परिस्थितियों ने जीवन को कितना प्रभावित किया है..?
उत्तर :- मेरे पिता के जीवन से मेरा जीवन बहुत भिन्न नहीं है और सरकार की सेवा में बड़े अधिकारी बनकर आप ओहदा और इससे एक अलग किस्म का सम्मान प्राप्त कर सकते हैं लेकिन
जहां तक संघर्ष की बात है , अपने पिता के जीवन संघर्ष से खुद अपने जीवन को मैं काफी दूर स्थित नहीं देख पाता हूं . वह एक बेहद ईमानदार अधिकारी थे और उनकी अपनी ऐसी कुछ गरिमा थी जिसके प्रति मेरे मन में आज भी एक सम्मान और सम्मोहन का भाव रहता है.
प्रश्न: आप अपने परिवार और वर्तमान में अपने पेशा के बारे में बताएं ।
उत्तर : मेरे परिवार में हमलोग पति- पत्नी और बच्चे कुल पांच प्राणी हैं . बड़ी बेटी बिहार पुलिस में नौकरी करती है . हमलोग मां के साथ तीनों भाई संयुक्त परिवार में साथ रहते हैं . मैं पिछले आठ – नौ सालों से बिहार में सेकेंडरी स्कूल के शिक्षक के रूप में हिंदी पढ़ाने का काम कर रहा हूं . इसके बाद बचे समय में कुछ डीजिटल पोर्टल पर स्वतंत्र लेखन करता हूं और लेखकों के लिए उनका प्रो मोशनल इंटरव्यू उनकी किताबों की समीक्षा इन सब कामों से भी कुछ आय मुझे हो जाती है.यह ज़रूरी है.
प्रश्न : आप राजधानी दिल्ली में कई सालों तक रहे ! साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का सान्निध्य आपको मिला ,यह सब अनुभव कैसा रहा..?
उत्तर: मेरे पिता जी ने मुझे 1989 में मुझे बी .ए .की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली भेजा था और यहां उस वक्त मेरे फुफेरे भाई मनोज कुमार झा रहते थे और वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास विभाग में शोध अध्येता थे . मैंने अपना नाम यहां लिखवा लिया और 1992 में बी .ए.की पढाई पूरी करने के बाद इसी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में एम .ए.किया . जामिया मिल्लिया इस्लामिया का साहित्यिक परिवेश अच्छा था और यहां से प्रकाशित होने वाली वार्षिक पत्रिका तहजीब में ही सर्व प्रथम मेरी कुछ कविताएं प्रकाशित हुई थीं.यह पत्रिका एक ही फाइल में हिंदी,अंग्रेजी और उर्दू में प्रकाशित होती थी. इसके अलावा यहां हिदी समिति की पत्रिका दृष्टि में भी मेरी कविता प्रकाशित हुई थी . यहां अक्सर
साहित्यिक संगोष्ठियां भी हुआ करती थीं और एक ऐसी ही संगोष्ठी में मैंने एक बार त्रिलोचन
और नामवर सिंह का भाषण सुना था .एक बार मैं
हिंदी अकादमी, दिल्ली के द्वारा आयोजित कालेजों के विद्यार्थियों के काव्य समारोह में भी काव्य पाठ के लिए गया था और वहां मंगलेश डबराल मुख्य अतिथि के रूप में पधारे हुए थे.दिल्ली में आगे भारतीय ज्ञानपीठ में मेरा आना जाना शुरू हुआ और यहां सुशील सिद्धार्थ, कुमार अनुपम और कुणाल सिंह से काफी अपनापन कायम हुआ और मैं यहां नौकरी भी करने लगा . रविन्द्र कालिया उस समय यहां निदेशक पद पर विराजमान थे!
प्रश्न :अगर आपके जीवन के रोचक प्रसंग जिसे आप जीवन भर नही भूल पाएंगे ऐसा कुछ है तो बताएं.!
उत्तर: आज से तीस साल पहले अपने पिता के देहांत का प्रसंग इसे मैं चाह कर भी नहीं भूल पाता हूं. उस वक्त मैं बी. ए. सेकेंड इयर में पढ़ता था और पिताजी से इस तरह अलग होने के बारे में कभी कुछ नहीं सोचता था लेकिन अचानक यह सब घटित हुआ और आज भी इसे मैं नहीं भूल पाता हूं. पिताजी के देहांत के बाद उनकी सारी जमापूंजी को मेरे बड़े भाई ने इसके बाद किसी दुकानदारी में बर्बाद कर दिया और हमलोग फिर ग़रीबी की चपेट में आकर काफी सालों तक दुख तकलीफ़ झेलते रहे .यह सब घर परिवार के लोगों की अनुभवहीनता के कारण हुआ था और घर परिवार के इन प्रसंगों को भुलाना आज भी मेरे लिए मुश्किल है.
प्रश्न :हाल में आपका एक काव्य संकलन ‘ शाम की बेला’ का प्रकाशन शॉपिजन पर हुआ है।उस पर कुछ टिप्पणी दें और काव्य के बहाने आप समाज को क्या कहना चाहते हैं..?
उत्तर : मेरे इस कविता संग्रह में पिछले कुछ महीनों के दौरान लिखी गयीं कविताएं संग्रहित हैं और काव्य को जीवन की कला कहा गया है . इसे आत्मा का स्वर प्रवाहित होता है और जीवनानुभूतियों के रूप में संवेदनाओं का समावेश इसे लौकिक तत्व का रूप प्रदान करता है . मेरी कविताओं में जीवन के सुख – दुख की बातें सहजता से शरीक हुई हैं और यह बहुत स्वाभाविक है.हमारी जीवन चेतना को संघर्ष के पथ पर अग्रसर करना ही कविता का मूल भाव है . काव्य लेखन से जुड़े मेरे
सरोकार सामाजिक स्तर पर इन संदर्भों से अनुप्राणित हैं ।
प्रश्न: अंत में अंतर्कथा के पाठकों से आप क्या कहना चाहेंगे..?
उत्तर: अंतर्कथा और तमाम दूसरे डीजिटल पोर्टल के पाठकों को हम कहना चाहते हैं कि सोशल मीडिया पर समाचार और अन्य चीजों के प्रकाशन और उसकी प्रस्तुति के बारे में अपनी जागरूकता से इसे बेहतर रूप प्रदान करने में अपनी सार्थक भूमिका के प्रति समाज की जिम्मेदारी को ज्यादा से ज्यादा सभी लोग ठीक से समझें और इसके लिए लेखन के माध्यम से भी अपना योगदान देने में सारे पाठक सामने आएं.