कहानीकार का परिचय
नाम –डॉ. कविता विकास
स्वतंत्र लेखिका व शिक्षाविद
ब्लॉग लिंक – काव्य वाटिका http://kavitavikas.blogspot.in/
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ई मेल- kavitavikas 28@gmail.com
कृतियाँ – दो कविता संग्रह (लक्ष्य और कहीं कुछ रिक्त है) प्रकाशित । साझा कविता संग्रह (हृदय तारों का स्पंदन ) ,(खामोश ,ख़ामोशी और हम ), (शब्दों की चहलकदमी) और (सृजक )प्रकाशित ।
दैनिक समाचार पत्र – पत्रिकाओं ,साहित्यिक पत्रिकाओं व लघु पत्रिकाओं में कविताएँ ,कहानियाँ ,लेख और विचार प्रकाशित ।ई -पत्रिकाओं में नियमित लेखन । इंक़लाब ,दृष्टिपात ,शब्ददूत,उत्कर्ष मेल, सम्यक भारत , वुमेन ऑन टॉप , शब्दिता ,हिंदी चेतना ,वटवृक्ष , माटी ,नव्या ,लोकसत्य,आज का अर्जुन ,मेट्रो उजाला , लोकजंग ,सद्भावना सन्देश ,वाकधारा, अभिनव मीमांसा ,यादें, युग गरिमा , सृजनलोक ,अभिनव इमरोज़ , एक और अंतरीप ,हमारा तिस्ता – हिमालय ,अनुगुंजन , वार्तालोक ,अभिनव प्रयास ,नयी धारा , भव्य भास्कर, स्कैनर ,सन्मार्ग ,संवृद्ध सुखी परिवार ,संगम , अन्वेषी , प्रतिमान , अंजुम ,आधुनिक साहित्य ,सर्वप्रथम ,पूरी दुनिया , नए हस्ताक्षर, जागरण सखी , गृहलक्ष्मी ,मेरी सजनी ,वनिता, बिंदिया, दमखम , शब्द सरिता ,आधी आबादी , सुसंभाव्य , हिमतरु ,समकालीन स्पंदन ,जनसंदेश टाइम्स ,नव निकष ,इंडियन हेल्पलाइन ,बालहंस ,जनसत्ता , शुभ तारिका , लोकस्वामी , फेमिना ,गगनांचल , मध्य प्रदेश जनसंदेश ,दबंग दुनिया ,पूर्वांचल प्रहरी ,ट्रू मीडिया ,अटूट बंधन , वंचित जनता ,पहला अंतरा ,समहुत, राजस्थान पत्रिका ,नई दुनिया , दीवान मेरा,सिम्पली जयपुर, समाचार आलोकपर्व ,कल्पतरु एक्सप्रेस,मरुतृण ,हरिभूमि ,साहित्य यात्रा ,वामा टूडे, वीणा ,यथावत , नेपथ्य ,ब्रह्मर्षि समाज दर्शन , यशधारा ,कृति ओर ,कादम्बिनी, पुरवाई, चौराहा ,प्रसंग , पतहर ,इंद्रप्रस्थ भारती ,कथाक्रम , अक्षर पर्व, परिकथा , साहित्य अमृत ,परिंदे , वागर्थ , रेवान्त ,आदिज्ञान, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण ,अमर उजाला ,प्रभात खबर ,दैनिक भास्कर(मधुरिमा) और अन्य पत्रिकाओं में लेख और रचनाएं प्रकाशित
सम्मान – विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान ,भारत गौरव सम्मान – २०१२,रंजन कलश शिव सम्मान ,नारायणी साहित्य अकादमी अवार्ड, राजीव गाँधी एक्सीलेंसी एवार्ड 2013, प्रभात खबर प्रतिभा सम्मान 2014, दैनिक जागरण संगिनी सम्मान , राज भाषा सम्मान , तथागत साहित्य सम्मान, सरस्वती सम्मान , विद्या वाचस्पति
सम्प्रति – डी . ए. वी . संस्थान,कोयलानगर,धनबाद
अन्य उपलब्धियां – कोल इंडिया लिमिटेड ,स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ,सी. बी .आई .,विद्यालयों , रेडियो स्टेशन, कवि सम्मलेन और अनेक संस्थानों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मंच संचालिका और उद्घोषिका का काम किया। औद्योगिक क्षेत्रों में महिलाकर्मियों के उत्पीड़न से जुड़ी समस्याओं पर गठित समिति की सदस्या तथा सामाजिक कार्यों में संलग्नता । दूरदर्शन और आकाशवाणी में काव्य पाठ और परिचर्चा ।
संपर्क – डी. – 15 ,सेक्टर – 9 ,पी ओ – कोयलानगर ,Dist – धनबाद,पिन – 826005 ,झारखण्ड
Mobile – 09431320288
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कहानी:- वसंत लौट रहा है
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वह मुझसे आठ साल छोटा था। जब किसी बात पे जिद करता तो लगता एक अबोध बालक अपनी माँ से बातें मनवा रहा है और जब किसी बात पे सलाह देता तो लगता एक बुजुर्ग बाप अपनी बेटी को समझा रहा है। हम दोनों के बीच एक अद्भुत रिश्ता था जो प्रेम से भी ऊँचा था।
बात हम हर रोज़ करते पर एक शहर में होने के बावजूद ज्यादा मिल नहीं पाने की विवशता थी। नौकरी और परिवार की जिम्मेदारियां। अपने – अपने परिवार से हम जुड़े हुए थे पर एक भावनात्मक लगाव की जो कमी अपने- अपने जीवन साथी में थी , उसकी पूर्ति हमे एक – दूजे में हो जाती थी ।
उससे मिलना भी एक संयोग था। उस दिन हमारे अपार्टमेंट के सामने ठेले पर सब्ज़ी बेचने वाला नहीं आया था। मुझे पता चला कि अब वह अपना ठेला चौराहे के पास की क्रॉसिंग पर लगाता है। मैं हाथ में झोला ले कर पैदल ही चल पड़ी।
करीब तीन – चार सालों से उसके पास से सामान वगैरह लेते रहने के कारण वह काफी मुँहलगा हो गया था। बड़े अधिकार से कह देता,थोड़ा रुकिए ,पहले अमुक – अमुक को दे कर विदा कर दूँ।
उस दिन भी वह एक सज्जन के लिए आलू तौल रहा था। मैंने उससे दो बार आलू के भाव पूछे और फिर भिंडी के। बड़े अनमने भाव से उसने उनके दाम बताये। कुछ और ग्राहकों में वह आदतन व्यस्त हो गया। मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी कि एक आवाज़ सुनाई दी ,”कितनी मिठास है आपकी आवाज़ में ,एकदम मिश्री घुली हुई सी।
“मैंने चौंक कर देखा ,वह मुझसे ही कह रहा था। “ओह. .हाँ ,”मैंने बस इतना ही कहा और सब्जी का झोला उठा कर चल पड़ी।शाम के पांच बजे थे। सौरभ के लिए नाश्ता बनाने का वक़्त था जब भी वह खेल कर आता ,सूजी का हलवा खाना उसे खूब अच्छा लगता। कभी – कभी तो मुझसे लिपट कर कह उठता ,” मम्मी यू आर ग्रेट। “फिर साढ़े छः बजे पतिदेव के आने का समय होता। अब तो सौरभ बारहवीं में चला गया था ,अन्यथा छोटी कक्षाओं में उसका होमवर्क भी बनवाना मेरा ही काम था। घर – बाहर की जिम्मेदारियों को निभाते हुए पिछले अट्ठारह सालों से मेरा अपना वज़ूद कहीं खो गया था। पांच साल पहले सासु माता का देहांत हुआ ,नहीं तो खिड़की पर मेरा खड़ा होना या देर तक छत पर बाल सुखाने पर भी पाबंदियां थीं। मैं मशीन बन गयी थी ,इसलिए जब रात को सारे काम निबटा कर सोने जाती ,तब गज़ब की नींद आती। पर आज तो नींद कोसो दूर थी। एक अजनबी ने मुझे बीते दिनों की याद दिला दी थी।
कॉलेज के दिनों में मैं अपनी मीठी आवाज़ के लिए जानी जाती थी। पापा ने मुझे पढ़ाई के साथ – साथ संगीत की भी तालीम दिलवाई थी। मैं रेडियो स्टेशन में अक्सर गाने जाती और मास्टर्स के पहले वहीँ उद्घोषिका भी बन गयी थी। सौरभ के जन्म के पहले मैं अपने ऑफिसर्स क्लब के फंक्शन में अक्सर गाती ।
मेरे चलते रोहित अपने बॉस के प्रिय बन गए थे। मुझे आस – पास के बड़े – छोटे सभी कार्यक्रमों में बतौर जज बुलाया जाता। धीरे – धीरे मैं अपने शहर की प्रसिद्ध गायिका बन गयी । पर यहीं से मेरे जीवन का संघर्ष शुरू हुआ। सास और बेटे के बीच जाने क्या संवाद हुआ कि रोहित ने एक दिन अप्रत्याशित घोषणा कर डाली ,” बहुत हो गया गाना – वाना का चक्कर ,तुम्हे कोई फिल्म में नहीं गाना है कि उसके पीछे अपना घर – बार झोंक दो। माँ की तरह घर के काम सम्भालो और तीज – त्यौहार में समय बिताओ।
” मैंने कहा ,”मैं व्रत – त्यौहार करते हुए संगीत के शौक को बरकरार रखूंगी ,इससे कोई खलल नहीं आएगी हमारे गृहस्थी में ,प्लीज मेरा यह शौक मत छुड़वाओ।
“पर नहीं , उन्हें इस बात का बहुत डर था कि कोई अन्य संगीत प्रेमी मेरे निकट न आ जाये। पहले मेरा क्लब जाना छुड़वाया गया ,फिर संगीत मास्टर को छुड़वा दिया गया और फिर तो बात- बात पर व्यंग्य बाण ऐसे चलने लगे जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
“अमुक ने उस दिन तुम्हारी इतनी तारीफ़ क्यों की , और मिस्टर खोसला तुम्हे ध्यान से क्यों देख रहे थे ,तुम उन्हें देख मुस्कुराई क्यों ?
“आदि – आदि , फ़िज़ूल की बातें। पिछले अट्ठारह वर्षों का इतिहास मानो आज स्मृति – पटल से हटने का नाम नहीं ले रहा था। रात गहराती जा रही थी। मुझे सुबह जल्दी उठना होता था। मैंने सब विचारों को एक झटके में हटाना चाहा, मुझे उसी नवयुवक की याद आ गयी जिसने मेरी आवाज़ की तारीफ़ कर मेरे जेहन में खलबली मचा दी थी।देर से नींद आयी ,वह भी उधड़ी हुई सी।
सुबह आँख खुलते ही रसोई में भागी। दिन चढ़ चुका था। मैं खुद को नियंत्रित करना चाह रही थी। अभी हाल में ही कपड़े तह करते हुए महरी की बातों को याद कर मुस्कुरा पड़ी तो रोहित पीछे ही लग गए। “किसने क्या कहा ,कब कहा ,क्यों कहा ?’उफ़ ,मुस्कुराना भी एक जुर्म है यहाँ। अपने जीवन के सबसे खास पलों में जब वह संतुष्ट व खुश होते तो भावुकता से कहते ,’उम्र बढ़ रहा है और तुम जवान होते जा रही हो। तुम्हे देख कर कोई पागल ही हो जाए उस पर से ऐसी दिलकश आवाज़। तुम भी तो आदमी ही हो , देखो कभी कुछ ऐसी – वैसी हरकत कर भी लेना किसी के साथ तो , मुझे मत बतलाना ,नहीं तो या मैं खुद मर जाऊँगा या तुम्हें मार डालूंगा।
” यह बात उसने एक बार नहीं अनेक बार दुहराई थी। मैं चुपचाप मुस्कुरा पड़ती। आखिर दिया ही किया था तुमने रोहित , बेहद स्वार्थी हो तुम ,तुम्हारे स्वार्थ का पता तो मुझे अपनी सुहागरात में ही चल गया था।
वह एक सच्चे दोस्त की भांति अपनी सारी खुशियां उसके साथ बांटना चाहती थी ,अपने अरमान पूरा करना चाहती थी। संगीत की दुनिया में नाम कमाना चाहती थी। अपनी वेदना – संवेदना पहली रात में ही न्योछावर कर देना चाहती थी ,पर नहीं ,रोहित ने चंद पंक्तियों में उसकी इन सभी आशाओं पर पानी फेर दिया था। ” तुम वही करोगी जो माँ चाहेंगी। चूल्हा – चौकी कल से ही सम्भालो । सम्भ्रान्त कुल की बहुएँ कोठे वाली की तरह गा -गा कर औरों को रिझाया नहीं करतीं। एक साल के अंदर माँ पोते का मुंह देखना चाहती हैं। ”
“क्या ? अभी शादी ही हुई है और बच्चे – वच्चे की जिम्मेवारी मैं नहीं लूँगी। फिर आपने तो पापा को कहा था मुझे नौकरी भी करने देंगे। ”
क्या बच्चों जैसी बातें कर रही हो ?क्या कहा हुआ बदल नहीं सकता ? “नहीं ,आपने पापा के साथ – साथ मुझे भी धोखा दिया। ” मैं पहली ही मुलाक़ात में टूट चुकी थी। जब तक अपने को संभालती तब तक वह दूसरी ओर करवट करके सो चुके थे।
ख्याल हैं जो हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बमुश्किल अनमने ढंग से नाश्ता पैक कर रोहित को दी। उनके जाने के कुछ देर बाद सौरभ भी ट्यूशन के लिए निकल गया। उसके जाने के बाद मैंने नहा – धो कर सुन्दर सी साड़ी पहनी और मेरे पैर अनायास ही दरवाज़े की ओर बढ़ गए। ठेले वाले के पास जैसे ही रुकी ,उसने पूछा ,”अरे मालकिनी ,कल की सब्जियां बड़ी जल्द ख़त्म हो गयीं। मेहमान आये हुए हैं क्या ?’मैंने उसे आलू तौलने को कहा। सब्ज़ी लेना तो एक बहाना था ,मेरी आँखें किसी और को ढूँढ रही थीं। बड़ी निराशा हाथ लगी। दस मिनट तक यूँ ही सब्ज़ियाँ उलटने – पलटने के बाद मैं चल पड़ी। मन को समझा रही थी कि कोई भला क्यों मुझसे मिलने आएगा। यह तो इत्तिफ़ाक़ था कि किसी को मेरी आवाज़ भा गयी और उसने तारीफ़ कर दी। सड़क पर चलते हुए आते – जाते कितने लोगों के साथ दुआ – सलाम होता रहता है।
अभी दस कदम ही बढे होंगे कि एक पहचानी सी आवाज़ आयी ,”आज फिर आलू ले आईं ?”पेड़ की छाँह में वही युवक मुस्कुराता हुआ अपनी कार से निकल रहा था। अपनी व्यग्रता छुपाते हुए मैंने पूछा ,”आप को पहले नहीं देखी इधर। नए हैं क्या ?”
“जी , भतीजी को यहीं कोचिंग सेंटर में डाला हूँ। उसे इस समय रोज़ छोड़ने आता हूँ। मेरा नाम सबद है। बैंक में कार्यरत हूँ। ”
“मैं मिसेज़ पायल सक्सेना ,सेक्टर सिक्स में रहती हूँ। ”
“जी ,किसी संगीत स्कूल में टीचर होंगी ज़रूर। ”
“नहीं – नहीं ,हाउसवाइफ हूँ ,पर संगीत शौक है मेरा। ”
मैंने सोचा बात आयी- गयी चली गयी। पर नहीं ,उससे और बातें करने की तमन्ना कायम रही। घर पहुँचते ही दिल ज़ोरों से धड़क उठा। रास्ते में कोई पहचान वाले ने देख न लिया हो। अभी तो बेटे को लंच के लिए आने में बहुत देर थी। रोहित लंच लेकर जाते थे। मैंने किताबों की अलमारी से अपनी पुरानी डायरी निकली। क्लासिकल गानों से भरी इस डायरी का पहला गाना ,’काहे न मनवा रैन पाये रे “मेरे प्रिय गानों में से एक था।
मैंने इसे गाना आरम्भ किया ,पर कुछ ही पंक्तियाँ गाने के बाद मुझे वर्षों से छूटी रियाज़ की कमी दिखाई देने लगी। मैंने डायरी एक ओर रख दी। इन तमाम वर्षों में मैं केवल रोहित की पत्नी और सौरभ की मां हो कर रह गयी थी। मैं जो पायल सक्सेना थी ,उसका अपना कोई नामो – निशाँ नहीं था। इतने दिनों में मुझे पता चल गया था कि पति – पत्नी केवल पति – पत्नी होते थे ,एक – दूसरे को देह सौंपने वाले रजिस्टर्ड व्यापारी।
जब भी वह रोहित से अपने मन की कोई इच्छा ज़ाहिर करना चाहती ,उसे चुप करा दिया जाता। वह इंग्लिश में एम. ए.थी और संगीत में ग्रेजुएट। रोहित के मर्ज़ी के खिलाफ वह नहीं जाना चाहती थी ,इसलिए रेडियो स्टेशन में कभी कोशिश नहीं की ,पर स्कूल ज्वाइन करना चाहती। रोहित को उसमें भी ऑब्जेक्शन था। “बस में कितने लोगों के साथ देह से देह टकराएगा ,किसी भी संस्था में काम करने वाले स्त्री – पुरुष बेतकल्लुफ से बातें करते हैं ,हंसी – मज़ाक करते हैं ,मुझे नहीं पसंद कि तुम भी करो। ” उसने प्रत्युत्तर में कहा था ,”अपनी संस्था में तुम भी तो ऐसा करते होगे ,मैंने तो इस बेतकल्लुफी से कभी परहेज़ नहीं किया। रोहित ,अपनी सोच ऊँची रखो ,शक – शुबहा से दूर ज़िन्दगी को जियो। ”
“अपनी औकात में रहो ,अकल नहीं किससे बात कर रही हो ,” लगभग चिंघाड़ते हुए रोहित मेरी तरफ लपके थे। अगर पीछे से सास ने हाथ नहीं पकड़ा होता तो शायद एक झन्नाटेदार तमाचा लग गया होता। सास और बेटे की राजनीति खूब पलती। जब तक मेरे पेरेंट्स जिन्दा थे ,उन्हें डर था मैं बगावत कर सकती हूँ। इसलिए मुझ पर सहने भर तक की ही चालाकी से जुल्म ढाई जाती।
बीच – बीच में यह जतला दिया जाता कि मेरे भाई – भाभी मुझे थोड़े रखेंगे ,माँ – पापा अक्सर बीमार रहते हैं ,दोनों ने मेरी शादी करके गंगा नहा लिया है। यही उलाहना मेरी तमाम दलीलों पर भारी पड़ जाता और मैं सोचती ,जब तक अपने पैरों पे खड़े होने का साहस न कर लूँ ,उनकी हर बात माननी होगी।ख्यालों में काफी समय गुज़र गया। सौरभ के आने से पहले लंच तैयार करना था। मैं किचन के कामों में लग गयी। सौरभ इस बार बारहवीं की परीक्षा देगा। ज्यादातर वह कोचिंग और ट्यूशन में ही रहता।
काफी मेहनती था। घर में बाप के दबदबा का असर अक्सर देखता। कभी – कभी तो उसकी फ़िज़ूल की ज़िद नहीं पूरी करती तो पिता के समान धमकी भी देता। पर फिर भी वह मुझे बहुत मानता। एक बार उसके स्कूल में पेरेंट्स नाईट का आयोजन था। उसमें पेरेंट्स के लिए भी एक प्रोग्राम था। लकी ड्रा में जिसके चिट में जो करने कहा गया ,सो करना था। मैंने बहुत स्मार्टली अपने चिट के अनुसार गाना गाया।
मुझे पुरस्कृत किया गया ।उसके दोस्त – यार जब भी इस बात को छेड़ते ,वह बहुत प्राउड महसूस करता । कभी कभी तो अपने पिता का मेरे प्रति दुर्व्यवहार देख कर मेरा पक्ष भी लेता। पांच साल पहले मेरी सास का देहांत हो गया। उनके मरने के बाद रोहित की अनुपस्थिति में मुझ पर नज़र रखने वाला कोई नहीं रह गया। इससे हमारे झगडे में भले ही कमी आयी हो पर रोहित का शक करने की बीमारी और बढ़ गयी।
समय से सौरभ घर आ गया। उसके साथ लंच लेते समय मैंने उससे कहा ,”बेटा ,दिन आजकल गुज़रता नहीं ,तुम पापा को कहो न ,मेरे लिए एक गाना मास्टर ठीक कर दें ,या शर्मा आंटी जिनसे सीखती हैं ,मैं उनके पास ही एक घंटा चली जाऊं। घर के काम तो दस बजे तक निबट जाते हैं फिर मैं बोर होती रहती हूँ। ” सौरभ को यह प्रस्ताव अच्छा लगा। उसने अपने पापा को रात के समय यह बात बतलाई। रोहित को पता चल गया कि मैंने ही उससे यह कहलवाया है। उन्होंने सिरे से बात ख़ारिज कर दी। पर सौरभ ने आँख मार कर मुझे तसल्ली दी कि वह उन्हें मनवा लेगा।
अब तो सबद के ख्याल अक्सर आने लगे। सुबह में गज़ब की फुर्ती आ गयी थी। फटाफट सारे काम निबटा कर कोचिंग सेंटर की ओर जाने को मन करता। बीच में संडे आ जाने से बड़ी कोफत होती। उस दिन भी मैं नियत समय पर सेंटर पहुँच गयी। पर पूरी वीरानगी दिखी। साइकिल – बाइक की कतार भी नहीं थी। मैं अंदर घुस गयी। चपरासी मुझे देखते ही निकल आया। मैंने पूछा ,”आज कोई नहीं दिख रहा। ” “मेरे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा ,”तीन दिनों की छुट्टी है। पर आप सक्सेना आंटी हैं क्या ?’
“जी ”
“अच्छा तो एक साहब ने यह पुर्ज़ा आपको देने कहा था। ” कहते हुए उसने एक कागज़ पकड़ा दिया।
मैंने खोला। वह सबद का मैसेज था। “तीन दिन के लिए सेंटर बंद है ,भतीजी को लेकर भैया के पास रोहतक जा रहा हूँ। आप इस नंबर पर फ़ोन कर सकती हैं। ” सबद से ने मिलने की निराशा तो थी पर उसका मोबाइल नंबर मिल जाने की ख़ुशी भी थी। अब रोज़ दिन यहां नहीं आना होगा। फ़ोन पर बात कर भी तसल्ली हो जाएगी। वापस लौटते हुए मैंने उसको फ़ोन मिलाया। ” जी ,मुझे पता था अब आपका कॉल आएगा। दिल को दिल की राह होती है न। मैंने इसीलिए तो अपना नंबर दिया था। ”
‘जी ,छूटते ही मैंने पूछा ,”कब आएंगे ?”‘कल ,लेकिन मिलूंगा परसों ,क्योंकि मैं डायरेक्ट बैंक चला जाऊँगा। ”
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि और क्या बात करूँ ,उसने परसों शाम को एक दूर के मॉल में बुलाया था।घर पहुँच कर मुझे लग रहा था कि एक अजीब सी बेचैनी हो रही है। मैं अपनेआप से पूछ रही थी ,वह मुझे इतना अच्छा क्यों लग रहा है ,क्या मुझे मात्र एक – दो मुलाक़ात में प्यार हो सकता है ? या महज एक आकर्षण ?”
सबद साधारण कद – काठी का युवक था। यूँ भी रंग – रूप कभी मुझे मोहित नहीं करता ,आदमी की विद्वता और व्यवहार की मैं कायल थी। इसलिए रोहित की मुझसे कम हाइट और गंजेपन से कभी कोई काम्प्लेक्स नहीं हुई। पर उन्हें होती थी ,इसलिए क्लब के कपल्स गेम में मैं स्टेज पर होती और उनका नाम बार – बार बुलाया जाता लेकिन वो नहीं आते। झुंझला कर मैं उतर जाती। मार्केट जाने या सैर करने समय भी अक्सर वो मुझसे चंद कदम आगे रहते। मेरी सासु माँ चाहती कि पति के ऑफिस वालों के सामने मैं इंग्लिश में बात करूँ और घर में उनके और रोहित के गलत – सही सभी बातों में हाँ से हाँ मिलाती फिरूं। पहली बार जब मैं गर्भवती हुई थी तो छल से मुझे बहला – फुसला कर मेरा गर्भपात करवा दिया गया था ,क्योंकि मेरे गर्भ में लड़की पल रही थी। मैंने बहुत मना किया था रोहित को इस पाप से बचने के लिए ,लेकिन मेरी मिन्नतों का कोई असर न था उनपर। मेरी तबियत उसके बाद से लगातार ख़राब रहती ,कमजोरी भी बेहद। लेकिन हर रात रोहित दैहिक तुष्टि के लिए आतुर रहते।
मैं मना करती तो भी जबरदस्ती कर अपनी बात मनवाते। यही वह समय था जब उस अहंकारी व्यक्ति से मेरा मन पूरी तरह टूट चूका था। उसी कमजोरी में मैंने फिर कंसीव किया। मैंने ठान लिया था कि इस बार अगर फिर लड़की हुई तो मैं भाभी के घर चली जाउंगी ,और सदा के लिए रोहित से अलग हो जाउंगी। पर इस बार लड़का था।रोहित के मन की मुराद पूरी हो गयी थी। मुझे अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना था। माँ फ़ोन पर सीख देतीं कि अच्छी बात सोचना ,टेंशन में नहीं रहना ,इससे बच्चे का अच्छा विकास होता है। मैं खुश रहने का यत्न करती। फिर सौरभ के जन्म के बाद तो उसकी परवरिश और घर – गृहस्थी में ऐसी व्यस्त हुई कि क्रांतिकारी ,स्मार्ट और कोकिल- कंठ पायल का अस्तित्व पूरी तरह मिट गया।
मॉल में हम नियत समय पर पहुँच गए। एक रेस्तरां के कोने वाली सीट पर हम आमने – सामने बैठ गए। उसने कॉफ़ी का आर्डर किया। आज मैं सबद के परिवार के बारे में जानना चाहती थी। मैंने पूछा ,”आपके परिवार में कौन – कौन हैं?”
“पत्नी और एक तेरह साल का बेटा। मेरी पत्नी और बच्चे में कोई कमी नहीं है पायल जी। शायद मैं ही उनके लायक नहीं हूँ। पत्नी के पिता बड़े पोस्ट पर सरकारी अफसर थे ,उसने पैसों के बीच ज़िन्दगी गुज़ारी है। इसलिए आदमी के मनोभाव और उसके ज़ज़्बातों की कोई कीमत नहीं है उसके पास। वह चाहती है मैं दिनोदिन करोड़पति बन जाऊं, ” एक सांस में सबद ने कह डाला।
“आपने उन्हें समझाया नहीं कि पैसे से बड़ा शांत और सादगी भरी ज़िन्दगी होती है। ”
“नहीं समझा पाया ,पिछले सोलह सालों में उसने मुझे निकम्मा , दरिद्र और जाहिल सिद्ध करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उसके साथ उसके माँ – पापा भी खड़े होते और मैं एक अपराधी की भांति चुपचाप बॉस की नज़र में ऊँचा उठने की उनकी सलाह पर मौन अभिव्यक्ति देता रहा ,पर कभी उन्हें अपना नहीं पाया। आप को उस दिन देखा तो जाने क्यों खींचा चला आया। आपके साथ आज पहली बार इतना लम्बा समय दिया हूँ ,लगता है जैसे वर्षों से हमारी दोस्ती है। “मैंने आहत भरे स्वर में कहा ,’ सबद जी ,मेरी माँ कहा करती थी कि लाखों – करोड़ों में कोई एक ऐसा मिलता है जिसका मानो जन्म – जन्म से इंतज़ार होता है।
वह पति या पत्नी के रूप में मिले, कोई ज़रूरी नहीं। मुझे लगता है यह इंतज़ार हमारा अब ख़त्म हो रहा है। मैं अपनी ज़िन्दगी ढो रही थी। अब जीने को मन करता है। आप से मिलकर दिल को सुकून मिलता है। “अपनी ज़िन्दगी के कुछ वाकया मैंने भी सुनाए। इस बीच कॉफ़ी आ गयी और जाने कब सबद ने अपने हाथों का भार मेरे हाथों में दे दिया ,पता ही नहीं चला। बहुत खुशनुमा शाम थी यह। एक – दूसरे से विदा लेने को जी नहीं चाह रहा था।
घर पहुँच कर मैंने अपने लिए चाय बनाई। अपने में एक नयी ऊर्जा का संचार महसूस कर रही थी। माँ पुनर्जन्म में विश्वास करती थी। किसी अंजान व्यक्ति से मात्र संयोग मिल जाना ,जुड़ जाना और आत्मीय बन जाना किसी पुनर्जन्म के रिश्ते को ही इंगित करता था। हम हर दिन बात करते कभी मोबाइल पे ,कभी वाट्सअप पे। बड़ी एहतियात से बातों को डिलीट भी कर देते। पहले बात – बात पर झुंझलाने वाली मैं अब किसी बहस में शरीक नहीं होती। रोहित की बातों को अनसुना कर मस्त रहने का यत्न करती। रोहित इस परिवर्तन को महसूस कर रहे थे। वह सोचते कि मैं सम्पूर्णतः उनकी गुलाम बन गयी हूँ , इसलिए पहले जिन बातों का विरोध करती थी ,उन्हें भी अब मान रही हूँ। सच तो यह था ,सबद की अनुपस्थिति में भी लगता कोई रक्षा कवच मुझे सुरक्षा दे रहा है। मेरा आत्मविश्वास बढ़ रहा था, मुझे किसी के दम्भ – उपालम्भ से कोई परेशानी नहीं हो रही थी।.
एक दिन ऑफिस से आकर रोहित ने बतलाया कि उसका ट्रांसफर भैरूगढ़ हो गया है। उन्हें दो दिन के अंदर ज्वाइन करना है। पशोपेश की स्थिति में थे वह। सौरभ का बारहवीं बोर्ड था , तो सौरभ के लिए कम से कम चार – महीने तो यहां रहना ही है ,फिर जब तक उसका दाखिला किसी टेक्निकल कॉलेज में नहीं हो जाता ,उसे यहां रहना होगा। मुझ पर बेतरहा शक करने वाला आदमी रात भर करवटें बदलता रहा। रात में जब भी मेरी नींद खुलती ,मैं उन्हें कुछ सोचते हुए पाती। सुबह उठने पर उन्होंने अप्रत्याशित घोषणा की ,”तुम मिसेस शर्मा के यहाँ जाकर संगीत की शिक्षा लेना आरम्भ कर लेना ,नहीं तो बेवजह खिड़की पे खड़ी होकर इधर – उधर देखती रहोगी। “मेरे तो पंख लग गए जैसे ,रोहित की दलील पर मन ही मन हंसी भी आ रही थी। कितना डरे हुए थे रोहित तुम ! संगीत की शिक्षा लेना भी तुमने इसलिए स्वीकार किया ताकि मैं और कहीं नहीं जा पाऊँ । इतनी छिरोरी सोच तुम ही रख सकते थे। ढेर सारी नसीहतें देने के बाद वो दूसरे दिन भैरूगढ़ के लिए रवाना हुए। सौरभ को भी मन लगा कर पढ़ने और हर दिन फ़ोन पर बात करने की हिदायतें दीं।
सबद से बीच – बीच में बात होती रहती। हम मिलते भी। अकेले में अपना – अपना दुःख – सुख बतियाते हुए हम करीब भी आ रहे थे। इसका अनुमान मुझे तब लगा जब एक दिन कार में बैठे हुए ही उसने मुझे अपने सीने से सटा लिया। मुझे लगा जैसे मरुस्थल में पानी वाले बादल छाने लगे हैं। मैंने बमुश्किल उससे स्वयं को अलग किया। गज़ब का संयम था उसमें। ऐसे ही एक अन्य मौके पर मैंने उससे पूछा था ,”क्या हम अपने परिवार वालों का विश्वास नहीं तोड़ रहे ?’ कुछ सोचते हुए उसने कहा ,”नहीं ,हम दोस्त हैं। अपने – अपने परिवार के प्रति हर जिम्मेवारी को निभा रहे हैं। भौतिक सुख – सुविधा तो हमने खूब भोगा ,पर मानसिक स्तर पर ,अपने ज़ज़्बातों को समझने वाला अब जा कर कोई मिला है। तुमने भी पति की हर ज़रुरत पूरी की और मैंने भी अपनी पत्नी की हर ज़रुरत पूरी की ,लेकिन हमारी ज़रूरतें हम ही पूरा कर रहे हैं ,न तुम्हे तुम्हारे पति ने समझा और न मुझे मेरी पत्नी ने। ”
सौरभ का बोर्ड आरम्भ होने वाला था। वह सेल्फ स्टडी कर रहा था। ज्यादातर घर में ही रहता। मेरा भी बाहर जाना छूट गया था। सबद की भतीजी भी बारहवीं की परीक्षा दे रही थी। रोहित को भैरूगढ़ गए दो – तीन महीने गुज़र गए थे। वह पंद्रह – बीस दिनों में एक बार आ जाते। उस समय मेरा ध्यान केवल उन पर रहता। उनके पसंद का खाना बनता और खूब खातिरदारी करती। फिर भी वह जतला देते कि उनके सामने मेरी इच्छा – अनिच्छा का कोई मोल नहीं। सौरभ की परीक्षा के समय उन्होंने लगातार बीस दिनों की छुट्टी ले ली। सौरभ को सेंटर पर ले जाना और ले आना वही करते। देखते – देखते महीना बीत गया। सौरभ की परीक्षा ख़त्म होने के बाद वह वापस लौट गए। अब सौरभ का सारा ध्यान प्रतियोगी परीक्षाओं पर था। इस बीच मैंने सबद से मुलाक़ात की। एक – डेढ़ महीने से हमारे बीच ठीक से बातें नहीं हुईं थीं ,सो काफी देर तक हम ने साथ वक़्त बिताई।समय किसी के रोके भला रुका है ! कभी – कभी स्वार्थी बन जाती ,सोचती जब तक सौरभ है ,बिना किसी ज़ोर – ज़बरदस्ती के यहां हूँ। एक बार उसके बाहर जाने पर क्या पता रोहित अपने साथ ले जाने की जिद करें। एक – दो महीने की सौरभ की व्यस्तता के बाद आखिर उसे भी सुकून मिल गया। बैंगलोर के एक नामी कॉलेज में उसे दाखिला मिल गया। बंगलौर जाने के पहले मैंने रोहित को कहा ,”चलिए एक बार भैरूगढ़ चलते हैं। सौरभ को भी चेंज हो जायेगा। ” रोहित ने बड़े अनमने ढंग से कहा ,’मैं ट्रांजिट कैंप में रहता हूँ। एक कमरे में दो लोग। तुमलोग कैसे रहोगे ?”यह बात मैं जानती थी पर इसी बहाने मैं टोहना चाह रही थी कि सौरभ के बंगलौर जाने के बाद वह मेरे बारे में क्या सोचते हैं ? उसने दो टूक शब्द में कह दिया कि वहाँ क्वार्टर उसे नहीं लेना है। तीन साल यूँ ही आते – जाते कट जायेंगे ,फिर यहीं ट्रांसफर की कोशिश करेगा।
सौरभ को बंगलौर पहुँचाने हम दोनों गए थे। रास्ते भर रोहित ने उसे खूब नसीहत दी मसलन पैसे नहीं खर्च करना ,पढ़ाई में मन लगाना ,बाहर का नहीं खाना आदि – आदि। मैं भी उनकी बातों का समर्थन करती।
उसे छोड़कर वापस दिल्ली आने पर रोहित एक दिन यहीं रहे। इस बार बड़े चुप – चुप से थे। लगता था कि मुझे लेकर थोड़ा चिंतित हैं। मैंने उनके जाने के पहले खाना पैक करते हुए पूछा ,”कब आएंगे अब ?””क्यों ?,जब मन करेगा आऊंगा ,तुम घर की साज – सफाई में ध्यान देना और ज्यादा बाहर – वाहर नहीं निकलना। ” मन तो किया कह दूँ कि इस नसीहत के पीछे क्या कहना चाह रहे हैं ,बखूबी जानती हूँ ,पर सिरफिरे आदमी का क्या ठिकाना क्या कर बैठें ,सो चुप लगा गयी। उनके जाने के बाद जैसे कोई काम ही नहीं था। अकेला घर और सन्नाटा। मैंने जम कर रियाज़ किया। फ़ोन पर सबद को अपना गाना भी सुनाया। वह फ़ोन पे ही अपनी पसंद के गाने की फरमाइश करता। कभी तारीफ करता ,कभी गलतियां बतलाता। कई बार तो मैं ज़बरदस्ती अपनी तारीफ़ करवा लेती …बोलो न मैंने अच्छा गाया ,बोलो न मैं कैसी लग रही हूँ ..आदि – आदि। उसे किसी पार्टी – समारोह में जाना होता तो मुझसे पूछता कि किस रंग का शर्ट पहने ,कौन सा परफ्यूम लगाए आदि – आदि। पसंद – नापसंद की बातों से होते हुए हम कब इतने करीब आ गए कि पता ही नहीं चला। अब तो कभी – कभी बिस्तर पर पड़े – पड़े रोमांटिक बातें भी होने लगीं थीं ,जब उसकी पत्नी घर पर नहीं होती। हालांकि आमने – सामने पड़ने पर हम एक – दूजे की खूब आदर करते। मेरे संगीत के गुरूजी आस – पास के समारोहों पर मुझे गाने की ब्रेक देना चाहते थे। मैंने रोहित से इसकी अनुमति लेनी चाही। पर उसने डांटते हुए इसे नकार दिया।मुझे यह ज़रा भी नहीं भाया। यह पहला मौका था जब मैंने उसकी आज्ञा के विरुद्ध एक समारोह में गाना गाया। मुझे बहुत प्रशंसा मिली ,पर मैंने इसकी खबर रोहित को नहीं दी। मेरे गुरु की अपनी संस्था थी ,जहां पर शहर में त्यौहार या विशेष अवसरों पर कार्यक्रम होते। मैंने उनके साथ हर कार्यक्रम में भाग लेने की ठान ली। इससे मेरा अकेलापन भी चला जाता और मेरा अपना टैलेंट भी निखरता। इस बार एक महीने के पश्चात रोहित आ रहे थे। कार्यक्रम के फोटोज़ तो मैंने छिपा दिए लेकिन कुछ ट्रॉफी – मैडल आदि नहीं छिपाई। मैं आने वाले तूफ़ान का सामना करने को तैयार थी। बहुत सहा था मैंने ,अब और नहीं।
मेरा अंदेशा सही थी। सुबह दस बजे रोहित आ गए। फ्रेश होने के बाद उनकी निगाह नाश्ते के टेबल पर पड़ी एक फ्रूट – बास्केट पर पड़ी जो मुझे गिफ्ट में मिला था। इधर – उधर के हाल – समाचार लेने के बाद उन्होंने ड्राइंग रूम में रखी एक ट्रॉफी के बारे में पूछा। मैंने कहा ,” समूह गान प्रतियोगिता में गुरूजी की टीम प्रथम आयी थी ,जिसमे सभी प्रतिभागियों को यह दिया गया था। ”
“तुमने मुझसे तो इसमें जाने का परमिशन नहीं लिया था?”
“नहीं ,इसकी ज़रुरत नहीं समझी मैंने। “इस उत्तर की आशा नहीं थी उन्हें। सो दो टूक फैसला सुना दिया ,’अब नहीं सीखना है गाना – वाना। देह में पर निकल आये हैं। “”मैं तो सीखूंगी ,आप रोक नहीं सकते। ” “… क्या ?जबान लगाती है … वेश्या हो क्या..गाना गाओगी, फिर दस लोग पैसे उछालेंगे तुम पर। यही तो तुम जैसी औरतों का शौक है,” कहते हुए उन्होंने थप्पड़ लगाना चाहा। उनके हाथ को पकड़ कर मैंने एक झटके से पीछे ठेलते हुए कहा ,”आप चाहें तो मुझे छोड़ दें ,सौरभ का पालन – पोषण मैं कर लूँगी ,लेकिन ऐसे व्यक्ति के साथ हरगिज़ नहीं रहूंगी जिसके लिए मैं मात्र एक वस्तु हूँ।इतनी गन्दी सोच रखने वाले से क्या उम्मीद रखी जा सकती है “मेरे बदले हुए इस रूप पर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
काफी देर तक बहस छिड़ी रही।अब मैं सती- सावित्री बन कर सब कुछ सहने वाली नहीं थी ,पर घर में हो- हल्ला मचा रहता। इसलिए चुपचाप खाना बना कर अपनी एक सहेली के यहां निकल गयी। वहीँ से मैंने सबद को फ़ोन मिलाया। वह ऑफिस में था ,मेरी पूरी बात सुनकर उसने कहा ,”वापस जाओगी तो फिर किसी तरह का हमला तो वह नहीं करेंगे न ? अगर कोई डर हो तो कहना मैं रात कहीं और ठहरने का इंतज़ाम कर दूंगा। ” मैंने कहा ,”नहीं सबद , मैं उनके पास रह कर ही सिद्ध करुँगी कि मैं अपने लिए जो कर रही हूँ ,उसे करने का पूरा हक़ है मुझे। ”
“फिर भी, जब भी मेरी ज़रुरत पड़े ,बतलाना। ” यही दिलासा तो जीवन के हर उस मोड़ पर मुझे चाहिए था जब मेरे स्वाभिमान के साथ – साथ मेरी आत्मा को कुचलने में मेरी सास और पति ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनके हर गलत फैसले को भी वह सह जाती अगर एक बार भी रोहित ने उसे अपनी बाँहों में भर कर प्यार व ढाढस दिया होता।
नौकरी छुड़वाने से लेकर गर्भपात करवाने तक तथा उसके शौक की बलि दिलवा कर गृहस्थी की आग में झोंककर सासु माँ जब भी विजयी मुद्रा में मुस्कुराती ,वह अंदर ही अंदर तिलमिला जाती। उसके बचपन की दोस्त टीना गाने के एक टी. वी. शो में जज बन कर आती थी। वह जब भी उसे देखती ,मन मसोस कर रह जाती। उस रात रोहित नहीं गए। यूँ भी वह अपने लौटने की तिथि कभी नहीं बतलाते। हमने अलग – अलग कमरे में रात बिताई। सुबह उठने पर सर भारी – भारी सा रहा। बदन भी गर्म था तथा देह में दर्द था। मैंने आये दिन की तरह रसोई में जाकर चाय बनाई और उसके कमरे में पहुंचा दी। मुझे पता था रोहित अपनी ओर से कभी बोलने की पहल नहीं करेंगे ,पर मैं भी नहीं बोलने जाऊँगी। नाश्ते में पोहा बनाकर मैंने टेबल पर ढँक कर रख दिया और स्वयं जा कर लेट गयी। नाश्ते के बाद उन्होंने डाइनिंग रूम से ही आवाज़ लगाई ,”मैं आज शाम की बस से जा रहा हूँ ,मेरे कपड़े प्रेस कर दो। “मैंने रूखे स्वर में जवाब दिया ,”मेरे सिर में बहुत दर्द है। मैंने गोली भी ली पर कोई फायदा नहीं हुआ। आप अपने से कर लीजिए। ” “क्या ? मैं खुद से कर लूँ और तुम सोई रहोगी ?क्या पता सचमुच दर्द हो भी रहा है या बहाना कर रही हो ?”आहत मन से मैं चोट खाई शेरनी की तरह गुर्राई ,”शर्म नहीं आती तुम्हे ,बीस साल से तुमने पहचाना नहीं मुझे क्या ,अपनी हर बात मनवाते रहे ,और आज मेरी तकलीफ पर बहाना बनाने की बात कर रहे हो ?” कहते हुए मैं उसके कन्धों को झिंझोड़ने लगी। रोहित को इस उत्तर की आशा नहीं थी ,उसने आव देखा न ताव और दो थप्पड़ रसीद दिए। भद्दी सी गालियां देते हुए चिल्लाने लगे ,”अकेले रहते हुए मनमानी करने की आदत लग गयी है। आज तुम भी मेरे साथ भैरूगढ़ चलोगी। ”
“नहीं ,मैं नहीं जाऊँगी। ज़रुरत पड़ेगी तो कोर्ट तक तुम्हे ले जाऊँगी। जिसने आज तक मेरी कद्र नहीं की ,उसके साथ तो अब बाकी ज़िन्दगी साथ रहने का सवाल नहीं उठता है। “अब तक सुस्त पड़ी जान में अचानक से जोश आ गयी। पल भर के लिए मैं सर दर्द और कमजोरी सब भूल गयी। वह बड़बड़ाते हुए सोफे पर बैठ गए। मैंने बाथरूम में अपने आप को बंद कर लिया और देर तक खुली नल के नीचे बैठी रही। आँखों से पानी निकलता रहा जब तक की थक कर चूर न हो गयी। शाम के तीन बज रहे थे। रोहित की बस पांच बजे होती थी। उसके जाने के समय मैं घर में नहीं रहना चाहती थी। पर्स में कुछ पैसे रख कर मैं चुपचाप बाहर निकल गयी। अपार्टमेंट के गार्ड को फ्लैट की चाबी रख लेने की हिदायत दे कर मैं रिक्शा लेने के लिए खड़ी हो गयी। मुझे पता नहीं था कहाँ जाना है। घर से थोड़ी दूर पर एक नर्सरी स्कूल था जहां पर टीचर की ज़रुरत का इश्तेहार लगा हुआ था। वहाँ पहुँच कर मैंने व्यवस्थापक से बात की। मैडम ने कई सवाल पूछे और दूसरे दिन मिलने को कहा। मुझे विश्वास था कि मुझे वहाँ नौकरी मिल जाएगी।
वहीँ से सबद को फ़ोन मिलाई। हम उसी पुराने मॉल में मिले जहां अक्सर मिला करते थे। इन सब काम में अच्छा समय लग गया। छह बज रहे थे ,रोहित ने जाने से पहले कोई कॉल नहीं किया। मैंने गार्ड को ही फ़ोन मिलाकर पूछ लिया। उसने बताया रोहित साढ़े चार बजे निकल गए हैं और फ्लैट की चाबी उसे दे गए हैं।सबद ने मेरे चेहरे से पढ़ लिया था कि कल से मैं बेहद परेशां रही हूँ।
उसने कहा ,”चलिए,एक अच्छी जगह ले चलता हूँ ,आप पुरसुकून से आराम करिये ,नहीं तो तबियत और बिगड़ जायेगी। ” उसने शहर के एक अच्छे होटल में कमरा बुक करवा लिया था। मैं पहली बार इस तरह किसी के साथ आयी थी। मेरी हिचक उसने भांप ली ,कहा ,” हम पहली बार तो अकेले नहीं मिले हैं। आपने अपनी भावनाओं और ज़ज़्बातों को हर बार मेरे सामने खोल कर अपनेआप को हल्का किया है। आपको आराम की सख्त ज़रुरत है।बताएं न ,क्या हुआ है ?क्या कहा है रोहित ने ?” कहते हुए वह मेरे बगल में आ गया और मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया। मैंने उसे तमाम घटनाओं के बारे में बतलाना आरम्भ किया।
अपने अपमान का जिक्र करते हुए मैं रो पड़ी। उसने कसकर अपनी बाँहों में जकड़ लिया। प्यार की इस गर्मी में मेरे अंदर जमा बर्फ का पहाड़ पिघलने लगा। जाने कब सबद ने लाइट ऑफ कर दी ।मेरे रोम – रोम में सिहरन हो रही थी। हम दोनों की साँसें एक हो रहीं थीं। हम अलग – अलग नहीं थे ,एक हो चुके थे। पतिव्रता स्त्री का लबादा ओढ़े एक मुद्दत से अपनी आत्मा को मार चुकी थी।मेरा वसंत लौट रहा था। आज उन सूखी डालियों पर नयी कोपल खिल जाने को आतुर हो रहीं थीं। मुझे सौरभ की याद आने लगी ,अनायास ही मेरे हाथ माफ़ी मांगने की मुद्रा में जुड़ गए। रोहित का धुंधला सा चेहरा सामने आया। मेरे मन में कोई अपराध – बोझ नहीं था। मेरी इच्छा के विरुद्ध जाकर भी जब रोहित अपनी दैहिक तुष्टि कर लेते तो विजयी भाव से कहते ,” उम्र बढ़ने के साथ – साथ तुम जवान हो रही हो। आखिर तुम भी तो आदमी हो। कभी किसी के साथ ऐसी – वैसी हरकत कर भी लेना तो मुझे न बताना ….. ..”
देखा रोहित ,अहं के बोझ तले क्या बोल जाते थे ,तुम्हे पता ही नहीं चलता था । तुम्हारी बात आज भी मान रही हूँ ,कभी नहीं बताऊँगी तुम्हे!
बाँहों की जकड़न कम हुई तो देखा सबद भी गहरी निद्रा में डूब चुका था। लगता था अरसों से वह भी इस सुख की तलाश में था।