• Sat. Sep 13th, 2025
साहित्य, संस्कृति, कला

कहानी:- ”एक जिद”

Byadmin

Sep 27, 2022
Please share this post

नवाव बजाहत अली के तीसरे पीढ़ी के वारिस अमजद अली के बहाने एक ऐसे पात्र का सृजन कहानीकार संदीप पांडे ने की है जो कहने के लिए तो नवाव खानदान से ताल्लुक रखते हैं।लेकिन नवावी चली गयी फिर भी अपने पुराने शानो शौकत के लिए जद्दोजहद कर रहा है।एक फिल्म की शूटिंग के प्रस्ताव के साथ हीं उनकी आर्थिक संकट दूर करने और हवेली की चर्चा के बहाने एक रोचक ताना वाना बन गया है।शिल्प और कथ्य के तौर पर एक शानदार प्रयास है।पढिये पूरी कहानी…!

   पता:- संदीप पांडेय
दुर्गेश, पुष्कर रोड, कोटरा, अजमेर,305004, राजस्थान,(इंडिया) फोन नम्बर:-9414070143

 

कहानी:- एक जिद

कहानीकार:-संदीप पांडे

 

वाब वजाहत अली की तीसरी पीढी के वारिस, अमजद अली भी अपने नाम के के आगे नवाब लगाते है, पर उनको नवाब साहब बोलने वाले अब कुछ कम ही लोग बचे हैं।

पचास की उम्र मे सभी उन्हे सम्मान से नवाब साहब पुकारे की भावना अब बहुत जोर मार रही है।

पुलिस अधिकारी, पत्रकार, जनप्रतिनिधि और सभी को, उनकी समझ अनुसार इस प्रयोजन हेतू लाभदायक शख्स को, अपनी हवेली मे दावत हेतु आग्रह कर चुके है।

कुछ लोगो ने उनकी दावत कबूल भी की पर अहसान का भार नवाब साहब के कन्धो पर ही लाद कर चल दिए।

एतिहासिक हवेली की क्षीण हो चुकी भव्यता लोगो को प्रभावित करने मे नाकाम सिद्ध हो रही थी। उनका एक ही प्रशंसक था, भोले उर्फ भोलाराम। भोले कृष्णा बैंड मे क्लेरनेट बजाने का काम करता है और शादी के सीजन के अलावा नवाब साहब की मिजाजपुर्सी मे ही अपना दिन व्यतीत करता है।

अमजद अली भी अपने किस्सो की उल्टी भोले के कान मे शान से करते हुए नवाब होने का अहसास कुछ हद तक कर सुकुन पा लेते है। प्रसिद्धी पाने की चाह की राह भी अपने इकलौते चेले , भोले से कई मर्तबा चर्चा का विषय बनती पर बिना किसी भरोसेमंद समाधान के सुबह से शाम हो जाती।

एक सुबह अपनी बगिया मे अमजद अली अखबार पढते चाय की चुस्की ले रहे थे कि भोले किसी को लेकर उनके पास पहुंचा। भोले का खिला चेहरा बता रहा था कोई शुभ समाचार ही है। “नवाब साहब यह इम्तियाज खान है, मुंबई मे डायरेक्टर विशाल भार्गव के यंहा काम करते है, आप से बात करना चाहते है।”

” सलाम वालेकुम नवाब साहब ”

पहली बार किसी अपरिचित के मुंह से यह सम्बोधन सुन कर अमजद अली की बांछे खिल गई।

” वाले कुम अस्….. सला…..म मियां। बताए क्या खिदमत कर सकता हूं।”

“नवाब साहब विशाल सर एक पिक्चर बना रहे है जिसमे नवाज भाई, तापसी और आलिया काम कर रहे है। पिक्चर का नाम है फुल इश्किया। शूटिंग के लिए पुरानी हवेली की जरूरत है।

अगर आप इजाजत दे तो आपकी हवेली एक महीने के लिए हमे इस कार्य के लिए उपलब्ध कर दे।”

अमजद अली की आंखे भोले की उत्साहित आंखो से चार हुई और अपने अंदर के उल्लास को संयमित करते हुए धीरे से पूछा।”

कब जरूरत होगी?”

“जी दो महीने बाद शुटिंग का शिड्यूल संभावित है ,पर उससे पहले हमे हवेली मे रंग रोगन कराना पडेगा और जरूरत के हिसाब से फर्नीचर की व्यवस्था करनी होगी।

अगर आप को परेशानी ना हो तो अगले हफ्ते ही हम काम शुरू कर सकते है।”

” हां हां बेशक , पर एक बार हम अपनी दोनो बेगम साहिबा से भी इस बारे मे चर्चा कर लेते है।

बच्चो को भी समझा कर पूछ लेते है। पर इसके लिए हमे क्या……मिलेगा।”

अटकते हुए अमजद अली ने पूछ ही लिया। “एक लाख रूपए नगद और जो भी रंगाई पुताई सामान का खर्चा होगा ,वो हम वहन करेंगे।” दो क्षण की चुप्पी के बाद नवाब साहब बोले”

अ.. हमारा नाम भी फिलम मे आएगा”

“यह तो डायरेक्टर साहब ही बताएंगे !

“इम्तियाज ने अपनी असमर्थता बता दी। नवाब साहब को अचानक अपना चमकता नाम धूमिल होता नज़र आया।

” ठीक है कल तक आपको जवाब देता हूं। आपका फोन नम्बर बता दीजिए। कल हम इसे फाइनल कर लेंगे।”

मन ही मन हवेली से प्रचार पाने का सपना साकार होता देखने की कल्पना लिए वो अपनी बडी बेगम के कमरे की ओर चल दिए।
छह महीने बीतने के बाद, फुल इश्किया फिल्म रिलीज हुई और ठीक ठाक चल भी गई।

L

शहर मे कई लोग उन्हे अब इश्किया नवाब के नाम से जानने पुकारने लगे थे।

लोकल पत्रकार द्वारा उनकी हवेली पर लिखे लेख के कारण , उनकी एक प्रतिष्ठित अखबार के संवाददाता से भी मुलाकात हो चुकी है। मुलाकात के दौरान संवाददाता से मिली राय, कि अपनी हवेली का फोटोशूट करवा ले ,जम गई ।

दो अच्छे फोटोग्राफर के नंबर भी उपलब्ध करा दिए । बढ़िया फोटोशूट करा अपनी हवेली के फोटोस् इन्टरनेट पर डालूंगा और फिर गानो, सीरीयल और फिल्म की शूटिंग हवेली मे करवा खूब नाम कमाऊंगा।

एक सप्ताह बाद ही राजधानी से दो फोटोग्राफर अपने साजो सामान सहित हवेली के दालान पर नवाब साहब के साथ भारी भरकम नाश्ते के साथ चाय की चुस्की लेते हुए उनके पूर्वजो की गाथा सुनने समझने की कोशिश कर रहे थे। दोनो मे से एक बडी उम्र के फोटोग्राफर, जो चालीस पार लग रहे थे, ने दार्शनिक अंदाज मे नवाब को राय पेश की,”

आपकी हवेली के पुरातन दृश्य को निखारने के लिए कुछ हेलोजन और रंगीन रौशनी की व्यवस्था करनी पड़ेगी। कुछ फव्वारे, एलईडी लाईट की झालरे और पांच रंग के दस स्मोक बम मंगा लिजिए।

कल सुबह से काम शुरू कर देंगे। अमजद अली को अचानक अपना गला सूखा प्रतीत हुआ। फोटोग्राफी का इतना झंझट। टेबल पर रखी पानी की बोतल गटागट पीकर बोले, “क्या यह सब जरूरी रहेगा।”

” काम साधारण चाहिए या उम्दा , आप तय कर लिजिए “। दाढी वाले दार्शनिक फोटोग्राफर ने सख्त सी आवाज मे जवाब दिया। आगे कुछ कहने या पूछने की इच्छा को नवाब अपने तक ही जब्त कर गए।

 

फोटोग्राफरो के विदा होते ही अमजद अली ने मुस्कान टेन्ट वाले को फोन लगाया और लाईट ,फव्वारे और स्मोक बॉम्ब सुबह पहले उपलब्ध कराने हेतू आर्डर दे दिया। “नवाब साहब बाकी सब तो मै भिजवा दूंगा पर यह स्मोक बॉम्ब मुझे जानकारी नही। यह कही और से मंगवा लें। ” “अमां अब मै कहां पता करूंगा आप ही पता कर मंगवा दो ना।” नवाब साहब की आवाज मे गुजारिश का पुट अधिक था।

“अजी यह बॉम्ब के बारे मे थानेदार जी से पूछो। वो ही बता पाएंगे। कल सुबह ग्यारह बजे तक मै बाकी सामान पहुंचा दूंगा।” अमजद अली के फोन रखते ही पास ही खडी छोटी बेगम तमततमाती बोली,” यह क्या बम वम लगा रखा है। शरीर के साथ दिमाग भी बुढा गया है क्या। बम मंगा के हवेली मे आग लगवाओगे क्या?” हक्के बक्के नवाब को इस बिन मौसम बारिश की आशंका बिलकुल नही थी।

वैसे भी वो उम्र के उस पड़ाव पर थे जंहा बीवी से प्रेम, झगडे की मात्रा से मापा जाता है। जितना ज्यादा झगड़ा उतना ज्यादा दम्पत्ति मे प्यार। पहले से उलझन मे घिरे अपने को संभालते किसी तरह बोले,

” अरे बेगम यूं रश्क ना किजिए, हम जरा जरूरी काम मे मशरूफ है , उस पर ध्यान लगाने दिजिए। ” “मै कहे देती हूं ,घर मै कोई बम नहीं आएगा वर्ना बच्चो को लेके अम्मी के पास आज ही चली जाऊंगी।” “आप जरा मेरे लिए एक गिलास पानी का ले आईये ” किसी तरह पीछा छुडाने की नीयत से नवाब बोले।

बेगम के कमरे से रुखसत होते ही थानेदार को फोन मिला दिया। “और भई इश्किया नवाब, कैसे याद किया? दावत की दावत दे रहे है क्या??? “अरे माई बाप वो स्मोक बॉम्ब चाहिए था , बता सकते है कैसे और कंहा मिल सकता है।” नवाब ने धीमी जबान मे पूछा।

” यार यह सुना तो है पर हमने कभी काम तो नही लिया।” शायद डीएसपी साहब को पता होगा, एक दो दिन मे पता कर बताता हूं।” ” एक दो दिन नही, मालिक, कल सुबह ही चाहिए। बस आप तो जंहा से भी मिले मंगा दिजिए। पूरे दस चाहिए” थानेदार जी से अच्छी तरह मिन्नते कर फोन रख दिया।

और किस से पता करे समझ नही पा रहे थे कि उन्हे दिव्य उजाला के संपादक का नाम जहन मे आया , शायद वो इस बारे मे कुछ बता सके। उनसे फोन पर बात करने नाकाम कोशिश के बाद , वो अपनी अचकन पहन उनके आफिस की तरफ पैदल ही चल दिए। थोडी दूर ही पंहुचे कि सामने से भोले उनकी ओर ही आता नजर आया। भोले ने भांप लिया कि नवाब साहब किसी मानसिक द्वंद से गुजर रहे है।

पहले तो अमजद अली टालने की कोशिश करते रहे यह मानते कि इस बिचारे भोले को इस बारे मे क्या पता होगा पर काफी आग्रह के बाद चलते चलते उसे स्मोक बॉम्ब की उलझन के बारे मे बता ही दिया।

” अरे यह तो पटाखे की दुकान पर मिल जाएगा।” भोले के यह शब्द नवाब के कान मे पडते ही तेज चलते कदम और अश्व गति से दौडते दिमाग ने जैसे सुकुन भरा विश्राम पा लिया।

“पटाखे…..तुम जानते हो स्मोक बम क्या है?” ” हां नवाब साहब किसी शादी मे अलग अलग रंग के स्मोक बम चलते देखे है। उनमे से रंगीन धुंआ निकलता है डांस के प्रोग्राम मे अक्सर स्टेज पर चलाया जाता है। नवाब साहब के सर से जैसे मनो भोज उतर गया।

उनका संकटमोचक भोले फिर उनके लिए खुशी की बयार लेके आया था।अगले दिन फोटो शूट पूरे शवाब के साथ तीनों प्रहर चला। और महीने भर बाद ही नवाब साहब की हवेली और किस्मत दोनो चमकने लगी थी। सालो पहले हथेली बांचने और सितारे पढ़वाने की जो भविष्य वाणी सुनी थी, अब साकार होती नज़र आ रही थी।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *