आज समाज मे जातीय नफरत का जहर इतना फैल चुका है कि ग्रामीण क्षेत्र के कई वर्गों के बीच इस रूढ़ि बाद के कारण लोग अमानवीय आचरण करने से नही चूकते हैं।आज इन्ही सोच के कारण कई ओनर किलिंग का मामला आम बात है।इसी यथार्थ को डॉ सुमन ने बहुत हीं मार्मिक ढंग से इस कहानी में उठाया है।पढिये सुमन की कहानी प्रेम दीवाने
आ ज पुरा गाँव खेत कि और क्यूँ भगा जा रहा है, – ”के होग्या ..? ”
दिव्या ने अपनी माँ से पूछा ….’!
माँ के होग्या सारे के सारे ये खेत्त्ता कि और क्यू जा से’…माँ से कोई जवाब न बना.के होग्या कुछ न होया ,तू फालतू दिमाग न लगा आपणा काम कर.
माँ ने नज़रे बचाकर जवाब दिया .’’ऐ छोरी फालतू बत्ता मैं पुरा दिन दिमाग लगाती रहेगी और एक काम ठीक तै न करेगी .घर कि बुआरी कर ,बर्तन भांडे साफ़ कर ..रात तै धरे धरे गाली दें लाग रे.. मैं जब तक आऊ सु.’’ माँ दिव्या से ऐसा कहकर बाहर जाने को आगे बढ़ी दिव्या से कोई जवाब न बना .
माँ के पीछे से मुंह बनाकर रह गई. माँ आगे बढती है दिव्या पीछे से आवाज़ देती है ..माँ सुण,आते बख्त झाड़ू लेती अइयो यी आली खराब होग्यी .इब न लगती मेरते ..कितने दिना तै तेरते कहन लाग री हूँ पर तेरे ध्यान ही न रह्ती …मैं भी साथ चलूँ .. तू कदे भूल जा” ????
माँ ने जाते हुए पीछे मुड़कर दिव्या को देखा …दिव्या माँ को देखकर हैरान थी .माँ …. तेरी अंख्या मै पांणी .के होया
.दिव्या बिना सोचे समझे माँ के साथ आगे बढ़ी.जैसे मानो माँ कि आँखों ने कहा हो . ‘’चल मेरे साथ’’ .दिव्या रास्ते में बार बार अपनी माँ कि तरफ ही देख रही थी ..माँ की आँखों से आंसू नही रुक रहे थे.एक अजीब सी बैचैनी माँ के चेहरे पर दिव्या को नज़र आ रही थी.
दिव्या अपनी माँ का हाथ पकडे हुए घर से खेत का रास्ता पार कर रही है और मन में ढेरों सवाल समुंदर कि लहरों कि तरह बार बार आकर उसके जवाबों से टकराते है..
खेतों के नज़दीक जैसे ही दिव्या पहुंचती है उसे सर ही सर नज़र आते है.वो देख कर हैरान हो जाती है ये सब क्या है इतनी भीड़ आखिर किस लिए …???
जैसे जैसे दिव्या आगे बढती है उसकी आँखों में दुर से जो शरीर कि छाया धुंधली सी नज़र आ रही थी वो करीब आते आते साफ़ होती है. दिव्या को पेड़ पर टंगे रमेश और नाज़िश के झूलते शरीर नज़र आते है.दिव्या के लिए पल भर सब कुछ ठहर सा जाता है…!
उसके सामने ढेरों यादें एक दम से कौंध जाती है….. वह एक दम सन्न सी खड़ी है तभी उसकी माँ उसे हिलाती है ऐ छोरी के होग्या , सुण मेरी बात… तभी दिव्या धम्म से ज़मीन पर गिर पड़ती है जैसे मानो पूरी कायनात उसके सामने चकनाचूर हो गई है…इस पुरे समाज की नंगी तस्वीर उसकी आँखों के सामने आ गई…दिव्या ने अपनी माँ से पूछा . यो के होग्या माँ,किसने यो सब करा ,
माँ के गलती थी उनकी,कल ही तो मैंने देखा उन दोनों को साथ में .. के होग्य…?? के बकवास कर री है छोरी, शुक्र मना जिंदा न जलाए,न तो सोचा तो यो था कि इन्हें नंगा घुमाऊ …. बस रोक लिया इन गाम वाला नै जब पुरे गाँव मै नंगे घुमाते वो ज्यादा ठीक रहता,जयसिंह सबके सामने कहता है …के पुरा गाम देख लेवे जो कोई भी इस तरह कि बेशर्मी दिखायेगा उसका यो ही हाल होगा..पर चाचा वे दोनों एक दुसरे नै प्यार करे थे,ब्याह करना चाहवे थे ,ब्याह…….. छोरी तू बावली तो न होगी ,एक मुसलमान का ब्याह एक हिन्दू कि गैल,तेरी अक्ल घास चरण तो न गई…न तो इस गाम मैं आज तक ऐसा हुआ है और न होगा!
…और जो कोई भी छोरा छोरी इस तरह कि हरकत करेंगे तो पुरे गाम मैं नंगा घुमाऊंगा ..जयसिंह पुरे आत्मविश्वास के साथ एक घोषणा करता है…सभी गाम वाले जयसिंह कि हाँ में हाँ मिलाते है…..!
दिव्या को सब कुछ घूमता सा नज़र आता है.वह अपना सर पकड़कर बैठ जाती है.उसका सर तेज़ी से घूमता है और कुछ अतीत कि यादों में वह खो जाती है.
आज दिव्या और उसके सहपाठी 12वीं कक्षा से पास होकर आगे कि पढ़ाई कि और बढ़ेंगे.सब लोग बहुत खुश है.सब के चेहरों पर ढेरों खुशियाँ एक साथ थी.दिव्या ने अपनी कक्षा में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किये.उसके चेहरे पर ढेरों सपने एक साथ सवार थे.वह आगे बढ़ना चाहती है.वह कुछ करना चाहती है .उसका मानना है ‘’हम हरयाणवी छोरियां नै मौका बहुत कम मिले है अपने जीवन में कुछ करण का.हम किसी तै कम न है.समय आण पे हम सब कुछ कर सके है..बापू कहवे है कि इस काले सर वाले तै कुछ न होवे ऐसा न हो सकता .’’
दिव्या अपने सपनों में खोई हुई है तभी रमेश आता है और दिव्या के कंधे पर हाथ रखता है..’और छोरी बहुत बहुत मुबारकबाद ,माण गे तैने तू कुछ करके मानेगी,भगवान् करे जो तू चाहवे है वो तैने मिले तेरे सारे सपने सच होवे “ रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा .तभी उसी वक़्त नाज़िश का भी आना होता है ‘तुम ऐसे ही आगे बढती रहो,खूब तरक्की करती रहो.अल्लाह करे तुम्हारी सारी ख्वाहिशे पूरी हो’ नाज़िश दिव्या कि बलाएँ लेती हुई होंठों पर हलकी सी मुस्कान के साथ कहती है.दिव्या दोनों को थैंक्यू बोलती हुई हंसती है.’वो सब तो ठीक है मै तो अपने सपने पुरे कर ही लुंगी पहले थम यो बताओ कि इब थम के करोगे.इब तो हम सब पास हो लिए अर आगे कि पढ़ाई कि खातर गाम तै बाहर जाना है तो थम दोंनु किस तरिया मिलोगे .
इब तो मैंने लागे है कि धीरे धीरे थम दोनों के इश्क के चर्चे पुरे गाम मै हों लाग गे .’’ अचानक दिव्या के चेहरे पर चिंता के बादल छा जाते है. जैसे पता नही उसने क्या कह दिया ..उसकी नज़रे उत्सुकता के साथ रमेश को देखती है.रमेश एक लम्बी आह भरते हुए ‘’के करेंगे अभी तो कुछ कर भी न सकते .सोच रहा हु बाउजी को अपने और नाज़िश के बारे में बता दू..लेकिन क्या बाउजी हमारे प्यार को समझेंगे क्या वो मेरा और नाज़िश का ब्याह कराने में साथ देंगे???
…पता नही दिव्या…. कुछ समझ न आता बाऊ जी तो मुसलामानों तै नफरत करे है..हमेशा उनके विपक्ष मै ही उनकी सोच रहवे है.एक बार नाज़िश घर आई थी पूनम कि गैल्या कुछ नोट्स लेण इसी बात पर बतंगड़ बण गा था..बापू ने पूरी रात सुनाया था मेरे तै ..और तो और मेरे ऊपर हाथ भी उठाया था ..यो तक कह दिया कि अगर वो मुसलमानी दुबारा घर आई तो तेरे खातिर अच्छा न होगा..चेहरे पर चिंता के बादलों के साथ रमेश दिव्या से कहता है…..दिव्या और नाज़िश एक दुसरे कि तरफ देखते है ,दोनों जैसे आँखों ही आँखों में ढेरों सवाल एक दुसरे से पूछते है…दिव्या नाज़िश कि आँखों के न जाने किस सवाल से परेशान सी हो जाती है..और अपनी नज़रें झुका कर इधर उधर देखने लगती है..नाज़िश की आँखों में ढेर सारे आंसू एक साथ छलक पड़ते है..!
रमेश एक दम से घबरा जाता है ,दिव्या भी परेशान हो जाती है …!
के होग्या ,क्यों घबरा री है ..सब ठीक हो जागा ..रमेश नाज़िश को विश्वास दिलाने कि कोशिश करता है ..तभी नाज़िश रमेश का हाथ पकड़ लेती है..कल तुम्हारी माँ हमारे घर आई थी ..!
नाज़िश डरी हुई सी रमेश को बताती है …रमेश एक दम सन्न सा रह जाता है .”के कह री है ,क्या कहा माँ ने ,.. मेरते तो माँ ने कुछ न बताया .क्यों गई थी माँ …बता कुछ क्यों आई थी माँ ..” रमेश दिव्या को पकड़कर अपनी बाहों में लेना चाहता है जैसे ही वो नाज़िश के हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचता है तभी नाज़िश कि चीख निकल जाती है…!
रमेश भौचक्का सा रह जाता है …के हुआ ,कहीं दर्द है के ..रमेश बौखलाया सा हुआ पूछता है …नाज़िश कोई जवाब नहीं देती …तभी रमेश नाज़िश के हाथ देखता है जो एक दम लाल हो रखे थे …!
जैसे किसी ने जलते हुए अंगारे नाज़िश कि हथेली पर रख दिया हो …तभी रमेश और दिव्या को नाज़िश के घर जाने कि पूरी कहानी समझ आई..रमेश गुस्से से बावला हो गया …मै अभी जाकर माँ से पूछता हु कि ये सब क्या है …जाते हुए रमेश का हाथ नाज़िश पकड़ लेती है हालांकि हाथ पकड़ते हुए नाज़िश कि हथेलियों में दर्द है पर उसे कुछ नही सुझा …रुक जाओ मेरे मिर्ज़ा ..मत जाओ…अब इन बातों से कोई फायदा नहीं ..सब सबकुछ जान चुके है ..और उनके मंसूबे भी साफ़ है …अब हमे जो भी करना है बहुत सोच समझकर करना है …नाज़िश ,रमेश कि आँखों में आँखें डालकर अपने सर पर रमेश का हाथ रखकर कहती है …।
दिव्या सब देख और समझ रही है ..उसे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करे …
दिव्या, रमेश और नाज़िश दोनों से बहुत प्यार करती है.दोनों ही उसके बहुत अच्छे दोस्त है ..दोनों को ऐसे तड़पता देख उससे रहा नही जाता वो कहती है तुम दोनों भाग जाओ ..आज रात ही …मैं मदद कर सकती हूँ
..नाज़िश और रमेश दोनों एक टकटकी लगाएं हुए दिव्या को देखते है..यो के कह रही है तू …तैने बेरा भी है तू यो के बोल री है …अगर ऐसा किया तो बेरा भी है के होगा…???
के होगा”…. कुछ न होवे.. फालतू मत सोच सब अच्छा होगा सब मान जागे इब तो समय बदल रहा है देख पहले छोरी कहा पढ़े थी अब पढ़े है म्हारे गाम में..ऊपर तै याद है राजू और लछमी ..उन दोनों नै भी तो भाग के ब्याह करा था ..थोड़े दिनों में सब मान जा गे ..आर इब तो उनके इक छोरा भी सें…किस तरह उसका दादा उसके पीछे बावला हो रहा है उसने गोद में लिए लिए हांडे है पुरे गाम मै…तो थारे घर आले भी मान जंगे..”दिव्या पुरे विश्वास के साथ कहती है जैसे सब वैसे ही होगा जैसा वो सोच रही..
रमेश कुछ सोच में पड जाता है जैसे उसे भी ये सब सही लगता कि जैसा दिव्या बोल रही है वैसा ही होगा…रमेश दिव्या कि बात मानने को तैयार है..पर नाज़िश को ये सब सही नहीं लगता ..’मुझे लगता है हमे अभी रुकना चाहिए ..कुछ दिन इन्तजार करते है..सब शांत हो जाने दो उसके बाद शांत दिमाग से सोचेंगे क्या करना है..कहीं जल्दबाजी में सब कुछ बिगड़ न जाए..बहुत सारी चीज़े है कब, कैसे, कहाँ भागेंगे,क्यूंकि पता नही कितने दिन हमे छुपकर रहना पड़े..तब तक खर्च कहा से आएगा …ये तमाम इंतजामात करने होंगे..उसके बाद ही हम लोग ऐसा फैसला ले सकते है..वर्ना जल्दबाजी सब बर्बाद कर देगी..और कुछ दिनों कि तो बात है सब तैयारी कर लेते है उसके बाद सब करते है….” नाज़िश दिव्या कि तरफ देखते हुए बोलती है.
लेकिन अगर ये बात पुरे गाम में फ़ैल गी तो के होगा , मेरा तो कहना है कि आज रात ही तुम दोनों अड़े तै निकल लो ..दिव्या जोर देकर कहती है .रमेश दिव्या और नाज़िश दोनों कि बातों को सुनता है और कुछ देर सोचने के बाद बोलता है ..दिव्या…मैंने लगे है हमे नाज़िश कि बात माण लेनी चाहिए ..अभी तो बात घर तक ही है,घरवाले रिश्तेदारों को तो बतायेंगे नही क्यूंकि इससे इण लोगों कि इज्जत चलि जाएगी ,तो बात आगे बढे उससे पहले सारे इंतजाम कर लेते है.रहण का ,खाने पिने का खर्च यो सब कहाँ तै आउगा..इन सबका बन्दोस्त करके हम कुछ दिनों में यहाँ तै भाग जांगे .तब तक बस किसी तरह बात संभाली रहवे …
रमेश कि बात नाज़िश को ठीक लगती है। लेकिन दिव्या अभी भी थोड़ी डरी सी हुई है ..दिव्या को अजीब सी एक घबराहट हो रही है .उसे लग रहा है जैसे सब खत्म होने वाला है…देख लो कही देर न हो जाए .
दिव्या डरी हुई सी आवाज़ में कहती है ..अरे नही तूने ही तो हमे ये सब करने का हौसला दिया है और तू ही अब डर री है ,ऐसा कुछ न होगा ,कुछ दिनों कि तो बात है उसके बाद सब अच्छा ही होगा..रमेश पुरे आत्मविश्वास के साथ दिव्या को कहता है ..चलो अब घर चलते है देर होण लाग री है.दिव्या कि माँ दिव्या को क्सोर से पकड़कर हिलाती है …ऐ छोरी कित खो गी ,के होग्या ,…एक दम से दिव्या सहम जाती है ..वो डर जाती है..वो देखती है अभी तो नाज़िश और रमेश मेरे साथ थे और अभी पेड़ पर…..वो खूब तेज फूट फूटकर रोने लगती है …
मैंने कहा था कि आज रात ही भाग जाओ पर मेरी एक न सूनी .ये क्या हो गया ..??
दिव्या मन ही मन सोच रही है अगर मेरी बात मान लेते तो शायद दोनों जिंदा होते.तभी दिव्या को हंसी कि आवाज़ सुनाई देती है ..जयसिंह जोर जोर से हंस रहा है.हँसते हुए जोर जोर से चिल्लाकर बोल रहा है “ जो कोई ऐसा करेगा उसका यही हाल होगा” ..
जयसिंह कि हंसी कि आवाज़ दिव्या को एक असुर के अट्टहास जैसी लगती है “असुर ही तो है अगर इन्सान होता तो दो लोगो कि जान नही लेता”.
दिव्या .. मन ही मन सोचती है ..दिव्या की माँ उसे घर ले जाती है..घर जाते ही दिव्या के पेट में दर्द होता है और उलटी करने लगती है …
जान्वारा नै शर्म न आई बालका कि जान ले ली …उनके लटके हुए शरीर न देख पाई छोरी…तू यहाँ लेट जा छोरी मैं निम्बू पाणी लाऊ सु …ऐसा कहकर दिव्या कि माँ रसोईघर कि तरफ जाती है …जाती हुई माँ का हाथ दिव्या पकड़ लेती है ..माँ दोनों के घरवाला का के हाल हो रा होगा.
..दिव्या पूछती है….माँ फुट फुट कर रोने लगती है ..तैने के लगे है बावली …के उन्हें दुःख होगा ..दोनु के घरवाला नै खुद मार दिया उनको …सब मिले हुए है …ये सुन कर दिव्या कि आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है…और चारपाई पर पड़ी पड़ी न जाने किन यादों में खो जाती है …
आज की सुबह में कुछ तो बात है दिव्या जल्दी उठी है जल्दी जल्दी उसने घर के सारे काम खतम कर लिए है मन ही मन हम होंगे कामयाब गाना गुनगुना रही है .दिव्या का दाखिला शहर के कालेज में हो गया है.आज दिव्या का कॉलेज का पहला दिन है ..दिव्या के साथ साथ गाँव के कई लड़के लड़कियों का दाखिला शहर के कॉलेज में हुआ है.दिव्या को एक बड़ा अफसर बनना है .
पूनम कोलेज जाने को तैयार है..देख बेट्टा म्हारी तू एक लोती औलाद है तेरे बिना कोई न है म्हारा …हम तो न चाहवे थे कि तू शहर जा पढ्न पर तेरी लगन के आगे हमने झुकना पड़ा.बस म्हारा सर न झुकइयो..तू खूब पढ़ ,लिख कर खूब नाम कमा बस किसी छोरे के चक्करा मै मत पडियो न तो तेरा यो बाप जीते जी मर जागा बस यो बिनती है मेरी ….दिव्या के पिताजी इतना कहकर फूट फूट कर रोने लगते है….दिव्या अपने पिता का हाथ थाम लेती है ऐसा दिन कभी न आएगा बापू ..
भरोसा रख मेरपे …यो के सुबह सुबह गपशप हो री है दोनों बाप बेटी मै ….आप भी के बात करो हो यो म्हारी छोरी है इब तक कुछ न हुआ तो इब के होगा आर न्यू बताओ यो कोई टैम है इन सब बाता का …दिव्या की माँ दिव्या का टिफिन देते हुए कहती है ..जा बेट्टा तू जा आज तेरा पहला दिन है…खूब पढाई करियो आर देख शाम नै जल्दी आ जइयो …दिव्या कित रहगी जल्दी चल ,न तो आज पहले दिन ही लेट हो जंगे ..पुष्पा दिव्या को आवाज़ देती है
..अच्छा माँ मैं जाऊ सु देख सारी छोरी जान लाग री है
…अच्छा बापू ध्यान रखियो अपना आऊ सु …ठीक है माँ जल्दी आउंगी …
दिव्या इतना कहकर अपनी सभी सहेलियों के साथ अपने कॉलेज के लिए जाती है…
आप भी यो तो देखो नाज़िश और रमेश कि मौत के बाद आज म्हारी छोरी इतनी खुश नज़र आई है चिंता मत करो मै उसने सब समझा दूंगी ..
यो ही अच्चा होगा उसकी ताहि ….दिव्या का पिता उसकी माँ को कहते हुए अपना गमछा उठाकर काम पर चला जाता है….
दिव्या नए सपनो और नई उमंगों से भरी हुई है.वो अपने सपनो में खोई हुई है..वो बहुत बड़ा नाम कमाना चाहती है अपने माँ बापू के लिए गाड़ी बंगला सब खरीदना चाहती है….
दिव्या न जाने किन अनगिनत सपनों में खोई हुई है…
दिव्या देख प्रोफेसर क्लास में आ गये है खड़ी हो जा दिव्या,दिव्या ,दिव्या एक दम से चौककर खड़ी हो जाती है
….सरोज दिव्या कि बाजु पर एक जोर से चींटी काटती है
..कहाँ खोई हुई है छोरी कुछ सुनाई न दे रहा …
अरे कुछ न बस ऐसे ही कुछ सोच रही थी …
दिव्या सपने भरी आँखों से देखती हुई सरोज को बोलती है
….आज दिव्या बहुत खुश है …तभी दिव्या कि नज़र रेखा कि तरफ जाती है… अरे ये किसके साथ बैठी है सरोज कौन है यो छोरा ….अरे पड़ोस के गाम का है अतुल …दोनों एक दुसरे ने पसंद करे है अपनी क्लास मैं वो राजेश न था उसका दोस्त है यो है न सुतरा ….सरोज ख़ुशी के साथ दिव्या को बताती है …
दिव्या एक दम चुप हो जाती है जैसे उसे कोई सांप सूंघ गया हो….. दिव्या अपनी आँखे बंद कर के अपनी टेबल पर सर रखकर न जाने क्या सोचने लगती है ….अचानक उसे अपनी आँखों के सामने रेखा और अतुल के शरीर पेड़ पर लटके हुए नज़र आते है …..