साहित्य संसार:पुस्तक समीक्षा
काव्यांचल ( काव्य संग्रह )
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कवयित्री: स्वर्णलता टंडन
“सोन
नयी दिल्ली
समीक्षक:- राजीव कुमार झा
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सु परिचित कवयित्री स्वर्णलता टंडन ‘ सोन’ के कविता संग्रह ‘काव्यांचल’ में संग्रहित सारी कविताएं पठनीय हैं और इनमें देश , समाज , जनजीवन, मौसम , प्रकृति, परिवेश के अलावा कवयित्री के मन की आहटों में संसार के प्रति उसके हृदय के प्रेम का सहज रंग सबको
भावविह्वल बना है देता है. इस संग्रह की कविताओं में यथार्थ और कल्पना के इन्द्रधनुषी रंग
काव्य फलक पर मणिकांचन संयोग में रचे – बसे प्रतीत होते हैं.
देश की सीमाओं की सुरक्षा में मुस्तैदी से जुटे सैनिकों के अलावा जीवन में अपने सुख – दुख के साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर समाज के सभी लोगों के जीवन के प्रति इन कविताओं में कवयित्री के मन का प्रेरक उद्गार
इस संग्रह की कविताओं में सर्वत्र अनुगूंज के रूप में समाहित है और इन सबके बीच सभी ऋतुओं और मौसमों में धरती पर जीवन के नये और निरंतर बदलते रंगों के साथ कवयित्री की काव्य चेतना की इन्द्रधनुषी छटा को कविता के कैनवास पर बिखेरते दृष्टिगोचर होते हैं .
स्वर्णलता टंडन ‘ सोन ‘ की कविताओं में अभिव्यक्ति का दायरा काफी विस्तृत है और इनमें कवयित्री अपनी रचनाधर्मिता में बेहद सच्चाई से काव्य साधना में संलग्न होकर जीवन और जगत से संवाद रचती दिखाई देती है और इनमें देश और समाज की उन्नति, प्रगति के साथ समाज में मौजूद वर्तमान जीवन की समस्याओं और विसंगतियों के विवेचन का भाव भी कवयित्री के राग विराग से नि:सृत हुआ है .
इस संग्रह की एक कविता में दहेज प्रथा की बुराईयों का चित्रण है और इसी प्रकार समाज में प्रचलित अन्य विसंगतियों से भी इन कविताओं में संघर्ष का भाव विद्यमान है और इनमें लोकतांत्रिक समाज और शासन को देश में मजबूत बनाने का संकल्प कवयित्री करती दिखाई देती है . आजादी के अमृत महोत्सव के स्वागत में लिखी गयी कविता भी हृदय में आनंद और हर्ष के भावों का संचार करती है –
” अमृत महोत्सव आज़ादी का मना रहे सब मिलके आज !
हीरक वर्ष है आया देखो –
झूम उठा है तन मन आज !
तोड़ जंजीर गुलामी की अब ,
स्वच्छंद हुआ है हर एक का मन
धरा आजाद, आजाद पवन है
आजाद हुआ है, आज गगन ! “
कविता में देश समाज के प्रति जीवन का उद्गार
सदियों से हमारी साहित्य की विरासत रहा है और आत्मीय प्रेम की अभिव्यक्ति से नारी कविता हमें निरंतर भाव विचार और चिंतन के मानवीय धरातल की ओर उन्मुख करती है!
प्रस्तुत कविता संग्रह की कविताओं में अनुभूतियों और
संवेदनाओं का संसार जीवन और जगत के प्रति कवयित्री के हृदय की सुंदर अभिलाषाओं को कविता की विषयवस्तु में समेटता है और इनमें आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले वीरों का गुण गान वर्तमान समाज में जीवन की
सहज आवाजाही के चित्र इन कविताओं को पठनीय रूप प्रदान करते हैं .घर आंगन में तुलसी के रूप में पवित्रता की महक की तरह से यहां दस्तक देने वाली औरतों महिलाओं नारियों का जीवन संसार और इन सबके साथ अपने मां – बाप के साये में जीवन की डगर पर अग्रसर होने वाले बच्चों की खुशियां कविता में नारी जीवन चेतना के सहज रूपों से अवगत कराती हैं . कविता की भाषा में स्वस्थ सामाजिक रीति रिवाजों , मूल्यों मान्यताओं ,
आदर्शों का चित्रण आसान नहीं है और यहां कवयित्री अत्यंत सहजता से समाज संस्कृति जुड़े
विषयों को अपनी कविता में समेटती प्रतीत होती है .
इस तथ्य को स्वर्णलता टंडन ” सोन ” की कविताओं का प्रमुख वैशिष्ट्य कहा जा सकता है . यहां एक कविता में उन्होंने गुरु पूर्णिमा के महात्म्य का भी वर्णन किया है .
स्वर्णलता टंडन ” सोन” कवयित्री के रूप में भारत की धार्मिक – आध्यात्मिक जीवन संस्कृति की उपासिका मानी जाती है और इस काव्य संग्रह की कई कविताओं में
विभिन्न देवी देवताओं की अभ्यर्थना उपासना से इनका यह जीवन स्वर इस काव्य संग्रह की कविताओं को नारी के मनप्राण के नैसर्गिक स्पंदन को सजीवता से
प्रकट करता है और इनमें सबके सुख शांति की कामना का भाव कविता में लोकमंगल की जीवन
चेतना को प्रतिध्वनित करता है . कवयित्री ने इन कविताओं में मुग्ध भाव से प्रकृति और परिवेश का भी सुंदर चित्रण किया है और हमारे जीवन में मेहनत और सच्चाई के अलावा जीवन की और जितनी भी अच्छी बातें हैं , इन कविताओं में प्रेम विश्वास और साहस संकल्प के रूप में यहां इन्हें विमर्श के रूप में मौजूद हैं देखा जा सकता है !