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साहित्य, संस्कृति, कला

संघर्ष से मुकाम तक पहुंचने वाले गुरुचरण सिंह उर्फ शेरा सिंह आज समाज के लिए बन गए प्रेरक पुरुष…

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Jul 5, 2024
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यूँ तो गुरुचरण सिंह शेरा एक आम व्यवासायी हैं लेकिन ये एक खास व्यक्ति भी हैं।ईश्वर ने इनके अंदर जो हिम्मत और हौसला दिया,वह असाधारण है।और यही वजह है कि इन्होंने एक ऐसा व्यवसाय खड़ा किया एक निपट देहात और ग्रामीण क्षेत्र में कि इनके प्रभाव से यहां हज़ारों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आज रोजगार मिला रहा है।

लेख:- विनोद आनंद

क सख्स जिसके मनोमस्तिष्क में भले हीं कई परेशानी हो ,अंदर भले हीं दुखों का पहाड़ हो लेकिन चेहरे पर धैर्य और मुस्कान।

आवाजों में मृदुता,अभिमान तो कभी उसे छुआ नही,बड़े अधकारियों से लेकर एक साधारण वर्ग के लोगों के लिए वही सम्मान।

दुखी को देखकर संवेदना उमड़ पड़ना।अपने आस पास के हर वर्गों के लिए मुसीबत के क्षण खड़ा हो जाना और अपने गांव के आसपास के हर सामाजिक सरोकार से जुड़ कर उसको बढ़ावा देना उस शख्शियत की है पहचान।

आज उन्होंने पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने व्यवसाय को समय दिया।गुणवत्ता और साफ सफाई पर ध्यान दिया।ग्राहकों की संतुष्टि और उसके भावनाओं का ख्याल रखा और अपने व्यवसाय को एक ऐसा ब्रांड बनाया जो राज्य तो छोड़िए कश्मीर से कन्या कुमारी तक उनकी एक अमिट छाप बन गयी ।

मैं भी स्वयं प्रत्यक्ष प्रमाण हूँ।मैं दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में किसी काम से गया।वहां जब अपना एडरेस बताने की जरूरत पड़ी तो वकील पूछ दिया।कहाँ रहते हो..? एक सरदार जी का होटल है जीटी रोड पर न्यू खालसा होटल, वहीं रहते हो क्या..?

मैने कहा जी हां।

फिर इस होटल के खान पान और इस होटल के मालिक के जिंदादिली का बखान करने लगा।वह कभी दिल्ली से कोलकाता कार से गया और इस होटल में रुक कर खाना खाया, वह इतना प्रभावित हुआ कि उसके जेहन में यह बात दिल्ली लौट कर भी बैठी रही।

यही इत्तिफाक बंगालूरु और चेन्नई में भी हुआ कोई मिला और इस होटल की चर्चा की।एक इंदौर के साहित्यकार बंधु ने तो कई वर्ष पूर्व कादम्बिनी में एक लंबा लेख लिख डाला ।

यह सब अचानक नही हुआ। यह पहचान बनाने में एक लंबा समय लगा,अपने व्यक्तित्व,अपनी निष्ठा और सर्व साधारण के लिए होटल व्यवसाय को यह रूप देने में उन्होंने पूरी जिंदगी लगा दी।

यह होटल है झारखंड के धनबाद जिला के गोविन्दपुर में जीटी रोड किनारे स्थित होटल न्यू खालसा होटल है ,और इस होटल के मालिक हैं गुरु चरण सिंह शेरा,उर्फ शेरा सिंह।

कौन हैं गुरु चरण सिंह उर्फ शेरा सिंह..?

यूँ तो गुरुचरण सिंह शेरा एक आम व्यवासायी हैं लेकिन ये एक खास व्यक्ति भी हैं।ईश्वर ने इनके अंदर जो हिम्मत और हौसला दिया,वह असाधारण है।और यही वजह है कि इन्होंने एक ऐसा व्यवसाय खड़ा किया एक निपट देहात और ग्रामीण क्षेत्र में कि इनके प्रभाव से यहां हज़ारों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आज रोजगार मिला रहा है।

इनके कारण आज यहां एक खाने पीने का ऐसा बाज़ार जमा की सैकड़ो होटल, दुकाने खुल गयी। आज रात दिन यहां मेला लगा रहता है। दूर दराज से लेकर आस पास के लोग यहाँ आते हैं और लजीज व्यंजन और स्वदिष्ट खानपान का आनंद लेते हैं।इन्होंने इस व्यवसाय को एक ऐसा स्वरूप प्रदान किया कि आज कितने लोगों के लिए ये एक प्रेरक पुरुष बन गए।कभी भी इनके चेहरे पर गुस्सा नही आया।इनके व्यक्तित्व का असर है कि कोई भी बाहर या दूर से आकर इनके पास पूरे तैश में आये।इनसे लड़ने के मूड में आये।लेकिन इनका प्यार भरा व्यबहार और हंसी ठिठोली ने उनके सारे गुस्सा को काफूर कर दिया।यह है इनके व्यक्तित्व का प्रभाव।

संघर्ष का सफर..!

आज गुरुचरण सिंह शेरा उर्फ शेरा सिंह एक सफल व्यवसायी के साथ एक अच्छे व्यक्ति हैं।ये प्रभावशाली व्यक्ति के अलावे एक निष्ठावान समाज सेवी भी हैं।आज हर वर्ग के लोग इनका सम्मान करता है।कई संस्थाओं से ये जुड़े हुए हैं।देश भर के कई संस्थाओं को इन्होंने अपनी पहचान छिपा कर भी सहयोग किया है।यहां तक का सफर बहुत आसान नही था।

इनका परिवार आजादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में बसा था। जब भारत आजाद हुआ पाकिस्तान में लोगों की कत्ले आम शुरू हुई तो कई सिक्ख और हिन्दू परिवार ने वहां से पलायन कर शरणार्थी बनकर भारत आये।

गुरुचरण सिंह उर्फ शेरा सिंह की परिवार भी भारत आये इनके पिता मल्लिक सिंह भी पाकिस्तान से भाग कर उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में आकर बस गए।

तत्कालीन सरकार ने उन्हें यहां पनाह दी थी। सिर छिपाने की जगह मिल गई पर रोटी मिलना मुश्किल था। रोटी की तलाश में यह परिवार भटक रहा था।उसी समय इस परिवार को कमला सर्कस में कैटरर का काम मिल गया । सर्कस में उन्हें सभी कलाकारों के लिए खाना सफ्लाई का ऑर्डर मिला हुआ था ।चूंकि सर्कर्स कंपनी का काम घुमंतू वाला था ।यह कंपनी कभी उत्तर प्रदेश, तो कभी मध्य प्रदेश जाता था तथा देश के अन्य भागों में जाता था । इसके साथ हीं यह परिवार भी यूपी एमपी होते हुए पश्चिम बंगाल आ पहुंचा। वहां बैंडेल में कुछ साल रहने के बाद 1972 में यह परिवार धनबाद आ गया । बाद में 1983 में गोविन्दपुर के जीटी रोड किनारे दो ढावा था एक का संचालन बंता सिंह कर रहा था और एक का संचालन काका सिंह कर रहा था।गुरुचरण सिंह ने काका सिंह का ढावा खरीद लिया और जीटी रोड पर स्थायी बसेरा बना कर इसे एक नया रूप देना शुरू कर दिया।

पहले इन होटलों में ट्रक रुकती थी।दूर के थकान से राहत के लिए ट्रक ड्राइवरों के लिए यहां इन ढावों में खटिया और चौकी लगा होता था जहां भोजन के बाद ट्रक चालक आराम फरमाते थे। गुरुचरण सिंह ने धीरे धीरे इस कांसेप्ट को चेंज किया।उन्होंने एक फैमली रेस्टुरेंट की परिकल्पना की।खान पान में गुणवत्ता, स्वाद में लज़ीज़, साफ सफाई, केविन ताकि कोई भी सम्मानीय परिवार यहां आकर किसी तरह का संकोच महसूस नही करें। इनका यह कॉन्सेप्ट चल निकला इनका देखा देखी पड़ोस के होटल ने भी अनुसरण किया।आस पास भी बहुत सारे होटल भी खुलने लगे और आज यह एक होटलों का शानदार मंडी बन गया।सच तो यह है कि शेरा सिंह का यह पहल और व्यवसाय ने यहां एक ऐसा माहौल बनाया की रात दिन सैकड़ो परिवार की रोजी रोटी चलने लगी।

अपने पूर्वजों के जन्म स्थली की यात्रा

गुरु चरण सिंह के परिवार को भारत आने के बाद उन्हें मलाल था।जिस मिट्टी पर उनके पूर्वजों ने जन्म लिया,परिस्थिति बस जहां से इनके पूर्वजों को भाग कर भारत आना पड़ा,एक बार उस भूमि पर कदम रखूं।वहां जाकर देखूँ।अपनी इस इच्छा को वे दवा नही पाए।और साल 2007 में अपने पुरखों की मातृभूमि को देखने रावलपिंडी स्थित अपने गांव पिंडी गए।आपने घर और पूर्वजों के जन्मस्थली को बहुत तलाशा।लेकिन सब कुछ बदल चुका था।कुछ भी नही मिला।बड़े मायूस होकर लौटे।

यूँ तो गुरुचरण सिंह शेरा एक आम व्यवासायी हैं लेकिन ये एक खास व्यक्ति भी हैं।ईश्वर ने इनके अंदर जो हिम्मत और हौसला दिया,वह असाधारण है।और यही वजह है कि इन्होंने एक ऐसा व्यवसाय खड़ा किया एक निपट देहात और ग्रामीण क्षेत्र में कि इनके प्रभाव से यहां हज़ारों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आज रोजगार मिला रहा है ।

1983 में जब युवा शेरा सिंह उर्फ गुरुचरण सिंह रतनपुर आये।यहां होटल व्यवसाय शुरू किया तो उनके अंदर बहुत उत्साह था।हौसला भी था।वे इस क्षेत्र में एक ऐसा माहौल बनाना चाहते थे कि यहां कोई भी तो गर्व के साथ इस गांव का नाम ले सके।

हालांकि यह उनके लिए संघर्ष का दौर था।जमा की गई पूंजी को उन्होंने खालसा होटल को खरीदने और उसे एक नया रूप देने में लगा दिया था। इसके लिए पूंजी की भी इनको जरूरत थी और परिश्रम की भी।फिर भी यहां के आस पास के क्षेत्र के विकास में भी लगे थे। आते हीं यहां दो काली मंदिर थी एक जीटी रोड के दक्षिण दिशा में और एक उत्तर दिशा में था जिसको इन्होंने जीर्ण शीर्ण अवस्था के इस मंदिर को इन्होंने नए सिरे से अपने खर्च से बनाया और 1984 -85 से पूरे धूम धाम से पूजा शुरू की।इनके सहयोग से प्रथम वर्ष कालीपूजा के समय शानदार मेला भी लगा और हम लोगों के कहने पर इन्होंने एक नाटक प्रदर्शन के लिये पूरा खर्च भी वहन किया।

उस समय यहां के सभी इनके मुरीद थे।प्राम्भिक दौर में ये लोगों को दिल खोल कर मदद करते थे।इनकी लोकप्रियता और लोगों में बढ़ता इनके लिए प्यार से कुछ मठाधीश को यहां नागवार गुजरा जिस से इनका मन भी टूटा।लेकिन अपने सेवा और लोको उपकार से नही पीछे हटे।जो काम इन्होंने यहां किया कभी भी ना तो उसमें श्रेय लेने का कोशिश किया और नही किसी को यह जताने का भी प्रयास किया।

उन्होंने कोशिश किया कि मैं ये कर रहा हूँ।रतनपुर में छठ पर्व हो तो तालाब की सफाई, रास्ते की सफाई और लाइटिंग की व्यवस्था।रतनपुर के दुर्गा मंदिर के निर्माण में सहयोग और पूरी टीम की हौसला अफजाई और कई सामाजिक कार्यों में भागीदारी की इनकी लंबी लिस्ट है।🐱

विपत्ति का पहाड़,फिर भी हौसला है बरकरार
लोग कहते हैं कि ईश्वर भी अच्छे लोगों की परीक्षा लेता है।इस परीक्षा की घड़ी में जो टूट गया सो टूट गया, जो नही टूटा वे जीवन के संघर्ष और और अपने धैर्य से जीना सीख जाता है। वर्ष था 2004, तिथि 25 फरवरी।यह एक ऐसा दिन के रूप में इनके जीवन में विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। इनके दो पुत्र राजा और काके जम्मू कश्मीर घूमने गए थे।साथ में और कुछ साथी उनका था। इस दौरान इनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और दोनों बेटे का दुखद निधन हो गया।वहां से चार्टर्ड विमान से जब उनका शव आया तो पूरे धनबाद के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, हर आंखों में आंसू,।उसमे एक बेटा राजा तो होटल व्यवसाय पिता के साथ सम्भाल रहा था।बहुत हीं सौम्य व्यबहार कुशल।धनबाद के हर लोगों में उसकी एक अलग पहचान थी ।और दूसरा बेटा काके बहुत हीं प्रतिभाशाली, व्यबहार कुशल, दिल्ली में रह कर आईएएस की तैयारी कर रहा था। दोनो बेटा गुरुचरण सिंह का सबसे बड़ा ताकत था।यह हादसा ने उनके परिवार को पूरी तरह तोड़ दिया।उनके हृदय में असीम वेदना,लेकिन फिर भी अपने को संभालने की पूरी कोशिश की।इनके इस दुख में पूरे इनके आस पास के गांव के लोगों ने अपनी संवेदना व्यक्त की उस वर्ष रतनपुर जहां ये रहते हैं किसी के घर में दिवाली नही मनी।उनके लिए और उनके बच्चे के साथ हुई इस हादसा से सभी दुखी थे।

इसके बाद भी इन्हें कई दुखों का सामना करना पड़ा पर ये कभी भी धैर्य नही खोया।आज इनकी यह साहस और इनकी सफलता का राज है।

समाजिक सरोकार से जुड़ाव और सेवा भाव
जब वे यहां आए तो कई सामाजिक कार्यों में लगे रहे।कई संस्थाओं से जुड़े।सामाजिक कार्यो के प्रति इनकी दिलचस्पी बढ़ी।लायंस क्लब, नागरिक समिति,के अलावे शिक्ख समाज की कई संस्थाओ से जुड़े जिसमें इनकी भागीदारी रही।

दया और संवेदना तो इनके दिल में भड़ा हुआ है।एक घटना कई वर्ष पूर्व की है।गोविंदपुर जीटी रोड पर दौड़ने वाले एक तेज र वाहन ने एक इंसानी जिंदगी छीन ली थी। सुबह से शाम हो चुकी थी पर उस लावारिस लाश को कोई अपना नहीं मिला। सड़क किनारे खालसा होटल के संचालक गुरुचरण सिंह शेरा सबकुछ देख रहे थे। उन्हें लग रहा था कि जैसे उस मुर्दे की रूह उन्हें आवाज दे रही थी, मुझे मुक्ति दे दो..। बस वह उठे और उसे न केवल कंधा दिया बल्कि गोविंदपुर मुक्ति धाम में उसका अंतिम संस्कार भी किया। तीन दशक से ज्यादा वक्त गुजर चुका है। लावारिसों को कंधा देने का सिलसिला अनवरत जारी है।

इसके बाद अपने पुत्र के निधन के बाद उन्होंने शमसान घाट को मुक्तिधाम के रूप में परिणत किया आज इन मुक्तिधाम गोविंदपुर खुदिया नदी जहां मृत्यू के बाद लोगों का अंतिम संस्कार होता है।का सौन्दर्यीकरण का बीड़ा इन्होंने उठाया। उनका सोचना है कि मानव का अंतिम पड़ाव तो मुक्तिधाम है जिसेस तरह बनाया जाय कि वहां जाकर लोगों को निराशा नही हो इस शमशान में जाने के बाद लोगों में नैराश्य भाव नही हो इसी लिए उसे इन्होंने मुक्तिधाम नाम देकर उसके सौंदर्यीकरण पर ध्यान दिया।कुछ कब्रिस्तानों में भी भवन बनाया।

इसके बाद मृत्यु के वाद शव रखने का फ्रीजर की कई जगहों के लिए व्यवस्था की।इन फ्रीज़र को ये लुधियाना से मंगाते हैं।और कई संस्थाओ को दानस्वरूप ये उपलब्ध कराया है जो लोगो को शव सुरक्षित रखने में सहूलियत मिले।

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One thought on “संघर्ष से मुकाम तक पहुंचने वाले गुरुचरण सिंह उर्फ शेरा सिंह आज समाज के लिए बन गए प्रेरक पुरुष…”
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