स्नेहलता का यह सफर आसान नहीं था। आरंभिक दौर में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अपने रास्ते खुद बनाए। उनकी यात्रा केवल उनकी सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन सभी कलाकारों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी कला से दुनिया को सुंदर बनाने का सपना देखते हैं।
आलेख :-सुभाष शर्मा (मुंबई)
वाराणसी की पवित्र धरती ने कई प्रतिभाओं को जन्म दिया है, और उन्हीं में से एक हैं स्नेहलता। कला की इस समर्पित साधिका ने अपने हुनर और अद्भुत सृजनात्मकता से रंगों और रेखाओं की दुनिया में एक अनोखी पहचान बनाई है। उनके पिता, केदार पंडित, ने हमेशा उन्हें सृजन की स्वतंत्रता दी, जिससे उनके अंदर की कलाकार आत्मविश्वास से विकसित हो सकी।
स्नेहलता ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पेंटिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। कला के क्षेत्र में अपने पंद्रह वर्षों के शिक्षण अनुभव के दौरान वे एक उत्साही शिक्षक और शिक्षार्थी बनीं। उन्होंने अपने छात्रों को न केवल कला की तकनीकी शिक्षा दी, बल्कि उनकी सृजनात्मकता को भी नई दिशा दी। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है। तानपुरा बजाना, शास्त्रीय संगीत सुनना, कविता लिखना, बैडमिंटन खेलना, और अनुपयोगी वस्तुओं से अद्भुत क्राफ्ट बनाना उनकी रुचियों में शामिल हैं। वे भारतीय लोक कला, दीवार भित्ति चित्र, बाटिक, बंधानी, बुनाई, ब्लॉक प्रिंटिंग और पत्थर शिल्प में निपुण हैं। साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों से रंगोली बनाना, परिधान सलाह देना और डिज़ाइनिंग में भी उन्हें महारत हासिल है।
स्नेहलता ने वाराणसी के कई विद्यालयों और कला संस्थानों में कला शिक्षक के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, जयपुर की प्रतिष्ठित टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ में टेक्सटाइल डिज़ाइनर के रूप में उन्होंने बेहतरीन काम किया। उनके डिज़ाइन भारतीय संस्कृति की गहराई को उभारते हैं और पारंपरिक कला को आधुनिकता का स्पर्श देते हैं। स्नेहलता का योगदान केवल चित्रों और डिज़ाइन तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने कला को समाज के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम बनाया। उन्होंने विभिन्न सामाजिक अभियानों के तहत इवेंट्स का संचालन किया, जिनमें पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने जैसे विषयों को प्रमुखता दी गई।
अपने कला सफर में उन्होंने कई बार उन चीज़ों को नया रूप दिया जिन्हें आमतौर पर अनुपयोगी माना जाता है। उन्होंने बेकार वस्तुओं से खूबसूरत क्राफ्ट तैयार किए, जिससे उनकी कला को एक अलग पहचान मिली। उनकी पहचान फैशन और टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में भी बनी, जहाँ उन्होंने अपनी सृजनात्मकता से नए आयाम गढ़े। उनकी कलात्मक शैली में एक विशेष मौलिकता देखने को मिलती है। उनके द्वारा बनाए गए परिधानों और डिज़ाइनों में भारतीयता और आधुनिकता का सुंदर संगम देखने को मिलता है। उनके हाथों से निकली चित्रकृतियाँ केवल रंग और रेखाओं का मेल नहीं बल्कि जीवन की अनुभूतियों का एक गहन प्रतिबिंब होती हैं।
स्नेहलता को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई क्षेत्रीय और राजकीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2001 से 2025 की शुरुआत तक उन्होंने लगभग 45 से 50 मुख्य कला प्रदर्शनियों का आयोजन किया, जिनमें कई एकल और समूह प्रदर्शनियाँ शामिल थीं। उनकी कार्यशालाएँ भी अनवरत चल रही हैं, जिनसे युवा कलाकारों को प्रेरणा मिल रही है। उन्होंने कई कला प्रेमियों और नवोदित कलाकारों को प्रशिक्षित किया है, जो आज अपने-अपने क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं।
स्नेहलता का यह सफर आसान नहीं था। आरंभिक दौर में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अपने रास्ते खुद बनाए। उनकी यात्रा केवल उनकी सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन सभी कलाकारों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी कला से दुनिया को सुंदर बनाने का सपना देखते हैं। स्नेहलता की यह यात्रा बताती है कि जब रचनात्मकता और समर्पण का मेल होता है, तो मंज़िलें खूबसूरत और राहें रंगों से भरी होती हैं। उनकी कला, उनकी सोच और उनका सफर, कला प्रेमियों के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगा।
उनका जीवन संघर्ष और सफलता की एक ऐसी मिसाल है, जो आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देती है कि यदि हौसला बुलंद हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।
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