सुभाष शर्मा के लिए कला केवल रंगों का खेल नहीं रही, बल्कि जीवन को समझने और महसूस करने का एक गहरा माध्यम बन गई। जिस सूक्ष्मता और संवेदनशीलता से वे जीवन के हर पहलू को अपनी कला में उतारते हैं, वह सामान्यतः केवल देखने मात्र से समझ नहीं आता, उसे वास्तव में महसूस करना पड़ता है। उनके चित्रों में भारतीय संस्कृति की गहरी झलक दिखाई देती है,
सुभाष शर्मा, एक ऐसा नाम है जो पत्रकारिता के क्षेत्र से निकलकर कला की विस्तृत और रंगीन दुनिया में अपनी एक अनूठी पहचान बना चुका है। उनका सफ़र जुनून, दृढ़ता और कला के प्रति गहरे समर्पण का एक जीता-जागता उदाहरण है। एक समय था जब वे एक फीचर संपादक और कुशल कार्टूनिस्ट के रूप में विभिन्न मीडिया संस्थानों में कार्यरत थे, लेकिन उनके भीतर एक कलाकार लगातार करवटें ले रहा था। यह एक ऐसी आंतरिक पुकार थी जिसे उन्होंने सुना और जब कला की ओर रुख किया, तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कला के प्रति उनकी यह यात्रा एक जुनून में बदल गई, और इस जुनून को सही आकार मिला जब उन्होंने कोलकाता ज़ोन के अंतर्गत चंडीगढ़ स्थित पी के के (P.K.K.) से पाँच वर्षों तक विधिवत कला प्रशिक्षण प्राप्त किया। यही वह समय था, जब उनके अंदर छुपा कलाकार पूरी तरह से उभर कर सामने आया, और उन्होंने कला को सिर्फ़ एक माध्यम नहीं, बल्कि अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया।
कला: जीवन को समझने और महसूस करने का माध्यम
सुभाष शर्मा के लिए कला केवल रंगों का खेल नहीं रही, बल्कि जीवन को समझने और महसूस करने का एक गहरा माध्यम बन गई। जिस सूक्ष्मता और संवेदनशीलता से वे जीवन के हर पहलू को अपनी कला में उतारते हैं, वह सामान्यतः केवल देखने मात्र से समझ नहीं आता, उसे वास्तव में महसूस करना पड़ता है। उनके चित्रों में भारतीय संस्कृति की गहरी झलक दिखाई देती है, विशेषकर उनके प्रशिक्षण काल के दौरान बनाई गई कृतियाँ इस सांस्कृतिक प्रभाव को स्पष्ट रूप से प्रकट करती हैं। वे दृढ़ता से मानते हैं कि कला एक संवाद है, एक ऐसा शक्तिशाली माध्यम जो रंगों और आकृतियों के ज़रिए जीवन की विडंबनाओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को प्रस्तुत करती है। उनकी कृतियाँ दर्शकों को सोचने और महसूस करने के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव स्थापित होता है। वे जीवन के उन अनकहे पहलुओं को सामने लाते हैं जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, और अपनी कला के माध्यम से उन पर प्रकाश डालते हैं।
प्रारंभिक जीवन और कलात्मक प्रेरणाएँ
बिहार में जन्मे सुभाष शर्मा का अधिकांश किशोर जीवन धनबाद और कोलकाता जैसे शहरों में बीता। इन शहरों की सामाजिक संरचना और विविधता ने उनके व्यक्तित्व और दृष्टिकोण को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान किया। उन्होंने अपने शुरुआती वर्षों में ही यह जान लिया था कि जीवन की कठिनाइयों और सामाजिक यथार्थ को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि चित्रों से कहीं अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। यह अनुभव उनके कलात्मक सफ़र की नींव बना और उनकी चित्र शैली को एक विशिष्ट पहचान दी। यही कारण है कि उनकी चित्र शैली में एक सादगी तो है, लेकिन उस सादगी में भी भावनाओं की एक गहन परत छुपी होती है। वे उन समस्याओं और अनुभवों को अपनी कृतियों में उकेरते हैं, जिन्हें उन्होंने स्वयं अनुभव किया है या अपने आसपास के समाज में देखा है। यह व्यक्तिगत अनुभव उनकी कला को प्रामाणिकता और गहराई प्रदान करते हैं, जिससे दर्शक आसानी से जुड़ पाते हैं।
विशिष्ट चित्र शैली और माध्यम का चुनाव
सुभाष शर्मा की चित्र शैली में एक विशिष्टता है—वह बनावटों से भरपूर है, परंतु अनावश्यक आडंबर से पूरी तरह रहित है। उनकी कला में कृत्रिमता का कोई स्थान नहीं है; वे अपनी भावनाओं और विचारों को सीधे और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करते हैं। वे माध्यम का चुनाव उसी आधार पर करते हैं, जो किसी भावना या विचार को सर्वाधिक प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर सके। चाहे वह ऑयल हो, जल रंग हो, या डिजिटल माध्यम, उनका चुनाव हमेशा कलाकृति के संदेश को बेहतर बनाने पर केंद्रित होता है। उनकी कृतियों में प्रयुक्त गर्म और मद्धिम रंग चित्रों को एक गंभीरता और भावनात्मक गहराई प्रदान करते हैं। ये रंग केवल सौंदर्य नहीं बढ़ाते, बल्कि देखने वालों के मन में एक स्थायी स्मृति के रूप में अंकित हो जाते हैं, जिससे चित्र का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है। यह रंग संयोजन उनकी कला की पहचान बन गया है, जो उनकी कृतियों को अन्य कलाकारों से अलग करती है।
कलात्मक शिक्षा और मजबूत नींव
शिक्षा के क्षेत्र में भी सुभाष शर्मा ने कला को समर्पित जीवन की एक अद्भुत मिसाल पेश की है। उनकी अकादमिक उपलब्धियाँ उनके कलात्मक सफ़र की मजबूत नींव बनीं। उन्होंने 1994 में आर ए सी एस (RACS), कोलकाता से बी.एफ.ए. (पेंटिंग) में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया, जो उनकी कलात्मक शिक्षा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इससे पहले, उन्होंने 1993 में चित्र विशारद और 1992 में चित्र भूषण की उपाधियाँ भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त कीं, जो उनकी प्रारंभिक कलात्मक प्रतिभा और समर्पण को दर्शाती हैं।
1991 में उन्होंने धनबाद स्थित आईएफए (IFA) से कमर्शियल आर्ट में डिप्लोमा किया, जिससे उन्हें व्यावसायिक कला की समझ मिली। इसके अलावा, 1986 में उन्होंने एवीटीएस ड्रॉइंग का प्रमाणपत्र प्राप्त किया, जो उनके कलात्मक आधार को और मज़बूत करता है। यह संपूर्ण शैक्षणिक पृष्ठभूमि उनकी कलात्मक यात्रा की मजबूत नींव बनी, जिसने उन्हें एक बहुमुखी कलाकार के रूप में विकसित होने में मदद की।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान
सुभाष शर्मा के कार्यों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से सराहा गया है, जो उनके कलात्मक कौशल और सामाजिक जागरूकता के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण है। उन्हें 1997 में कोयला खदान दुर्घटनाओं पर आधारित सर्वश्रेष्ठ डिस्प्ले आर्ट के लिए दस्तक सांस्कृतिक मंच, धनबाद से सम्मानित किया गया, जो उनकी संवेदनशीलता और सामाजिक मुद्दों पर कला के माध्यम से प्रकाश डालने की क्षमता को दर्शाता है। 1994 में कोलकाता स्थित बंगीय संगीत परिषद ने उन्हें पेंटिंग में स्वर्ण पदक से नवाज़ा, जिससे उनकी उत्कृष्ट चित्रकला को राष्ट्रीय पहचान मिली।
1995 में ‘बेटी शिक्षा’ पर जागरूकता फैलाने वाली उनकी कला को अंतर्कथा मीडिया हॉउस औऱ सांस्कृतिक परिषद, गोविंदपुर द्वारा सम्मानित किया गया, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कला के उपयोग पर उनके विश्वास को दर्शाता है। इसी क्रम में 1995 में ‘गजलीतांड त्रासदी’ पर आधारित ऑयल पेंटिंग के लिए उन्हें लायंस क्लब बलियापुर से रजत पदक प्राप्त हुआ, जो उनकी भावनाओं की गहराई और अभिव्यक्ति की शक्ति का प्रमाण है।
ऐसे ही अनेक सम्मानों की सूची में 2001 में सामाजिक जागरूकता पर आधारित सबसे लंबी पेंटिंग के लिए एक विशेष सम्मान शामिल है, जिससे उनकी रचनात्मकता और सामाजिक संदेश देने की क्षमता प्रदर्शित होती है। 2004 में ‘हार्मनी’ शीर्षक पर बनाई गई पेंटिंग के लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया, जो उनके सार्वभौमिक विषयों पर काम करने की क्षमता को दर्शाता है। 2002 में आदिवासी और लोक चित्रकला के लिए उन्हें रजत पदक से नवाज़ा गया, जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके सम्मान और उस पर आधारित कलात्मक अभिव्यक्ति को रेखांकित करता है। ये सभी गौरवशाली उपलब्धियाँ सुभाष शर्मा को एक असाधारण कलाकार के रूप में स्थापित करती हैं, जिनके कार्य कला जगत में और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
कला प्रदर्शनियों की व्यापक यात्रा
सुभाष शर्मा की कला प्रदर्शनियों की यात्रा अत्यंत व्यापक रही है, जिससे उनकी कला को देश-विदेश में व्यापक पहचान मिली है। कोलकाता स्थित रवींद्र भारती (1998) में उनकी एकल प्रदर्शनी ने कला प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद इलाहाबाद का ‘आकृति सेंटर’ (1999), धनबाद का ‘कला भवन’ (2000 और 2003), जमशेदपुर का ‘तुलसी भवन’ (2002) और नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर (2008) में उनकी एकल प्रदर्शनियाँ आयोजित की गईं, जहाँ उनकी कला को सराहना मिली।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने ट्रिवेणी कला संगम, इंडिया हैबिटैट सेंटर, ललित कला अकादमी, आकृति आर्ट गैलरी (कोलकाता), और कला भवन (धनबाद) जैसी प्रतिष्ठित स्थलों पर समूह प्रदर्शनियों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। इन समूह प्रदर्शनियों ने उन्हें अन्य कलाकारों के साथ जुड़ने और अपनी कला को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने का अवसर दिया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वे अपनी कला का परचम लहरा चुके हैं। लॉस एंजेलेस स्थित सिमरन कलेक्शंस की डिजिटल आर्ट प्रदर्शनी (2009) में उनकी डिजिटल कला को प्रदर्शित किया गया, जो कला के नए रूपों में उनकी रुचि को दर्शाता है। फ्रांस में एएनयूजीए एक्सॉटिक फ्रूट आर्ट (2010), नई दिल्ली के आईएनए (2011), ऑल इंडिया आर्ट फेस्टिवल (2015), सिक्योटेक इंडिया (2017) और सीकोना एस्ट्रा, मुंबई (2018) जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में उनकी भागीदारी ने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। इन प्रदर्शनियों ने उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया, जिससे उन्हें व्यापक प्रशंसा मिली और उनकी कला को नए आयाम मिले।
प्रतिष्ठित संग्रह और कला का प्रसार
सुभाष शर्मा की कृतियाँ कई प्रतिष्ठित संस्थानों और कॉर्पोरेट कंपनियों की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं, जो उनकी कला की व्यापक स्वीकार्यता और व्यावसायिक सफलता का प्रमाण है। धनबाद स्थित रिलायबल इंडस्ट्रीज़, कोलकाता की अंबुजा सीमेंट शाखा, और लॉस एंजेलेस की सिमरन कलेक्शंस जैसी जगहों पर उनकी कलाकृतियाँ संग्रहित हैं, जो उनकी कला के वैश्विक प्रसार को दर्शाती हैं। मास्को की डिना डेंटामेड, मुंबई की कैडबरी और ब्लश कॉस्मेटिक्स, लखनऊ की रुपानी इंडस्ट्रीज़, नई दिल्ली की हीरो होंडा शाखा, मुंबई की एफेक्ट्स टेक कंपनी और फिल्म इंडिया, नवी मुंबई की कॉटन कॉर्पोरेशन इंडिया तथा लाइफ इंश्योरेंस कंपनी जैसी कई प्रतिष्ठित कंपनियों ने उनकी पेंटिंग्स और डिजिटल आर्ट को अपने संग्रह में शामिल किया है। यह दर्शाता है कि उनकी कला केवल दीर्घाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में भी इसे महत्व दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त, कोलकाता मेट्रो में राधा-कृष्ण स्केच, कोलकाता के बिड़ला अस्पताल की दीवारों पर चित्र और मुंबई के हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्यालय में उनकी कलाकृति देखी जा सकती है। ये सार्वजनिक स्थानों पर उनकी कला की उपस्थिति यह दर्शाती है कि वे अपनी कला को आम लोगों तक पहुँचाने में विश्वास रखते हैं। कई निजी संग्रहकर्ताओं के पास देश और विदेश में उनकी कलाकृतियाँ सुरक्षित हैं, जो उनकी कला की स्थायी अपील और निवेश मूल्य को प्रमाणित करती हैं। यह व्यापक संग्रह यह दर्शाता है कि सुभाष शर्मा की कला न केवल सौंदर्यपूर्ण है, बल्कि इसका एक स्थायी सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी है।
फिल्म निर्माण और रचनात्मक विस्तार
एक चित्रकार के साथ-साथ, सुभाष शर्मा एक सफल फिल्म निर्माता और आर्ट डायरेक्टर भी हैं, जिससे उनके रचनात्मक दायरे का विस्तार होता है। 2008 में मराठी फिल्म ‘मुलगा’ में आर्ट डायरेक्टर के रूप में उनका काम उनके कलात्मक कौशल को फिल्म माध्यम तक ले गया, जहाँ उन्होंने दृश्यों को कलात्मक रूप से जीवंत किया। उनके यूट्यूब चैनल ‘स्केच मल्टीमीडिया’ पर कई एनिमेटेड लघु फिल्मों का निर्माण हुआ है, जो उनकी कहानी कहने की क्षमता और डिजिटल माध्यम में रचनात्मकता को दर्शाती हैं। इन एनिमेटेड फिल्मों के माध्यम से वे विभिन्न विषयों पर प्रकाश डालते हैं और अपनी कला को एक नए रूप में प्रस्तुत करते हैं।
2019-20 में बनी ‘दाग ही दाग’ नामक लंबी अवधि की लघु फिल्म, जो यशपाल शर्मा की कहानी पर आधारित है, में उन्होंने आर्ट डायरेक्टर की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उनका योगदान दृश्य कहानी कहने और पात्रों की भावनात्मक गहराई को बढ़ाने में महत्वपूर्ण था। वर्तमान में उनकी वेब सीरीज ‘मरीन ड्राइव’ निर्माणाधीन है, जो समकालीन समाज और जीवन के विविध पहलुओं पर केंद्रित होगी। यह परियोजना उनके रचनात्मक विकास और विभिन्न माध्यमों में अपनी कलात्मक दृष्टि को व्यक्त करने की इच्छा को दर्शाती है। फिल्म निर्माण में उनका प्रवेश यह साबित करता है कि उनकी रचनात्मकता किसी एक माध्यम तक सीमित नहीं है, बल्कि वह विविध कला रूपों में विस्तार करने में सक्षम है।
वर्तमान गतिविधियाँ और भविष्य की प्रेरणा
आजकल सुभाष शर्मा नवी मुंबई स्थित अपने स्टूडियो ‘स्केच मल्टीमीडिया’ में सक्रिय रहते हुए कला और फिल्म निर्माण से जुड़े प्रोजेक्ट्स में संलग्न हैं। यह स्टूडियो उनके रचनात्मक कार्यों का केंद्र है, जहाँ वे लगातार नए विचारों और परियोजनाओं पर काम करते हैं। इसके साथ ही, वे ‘अंतरकथा मुंबई’ तथा अन्य पत्रिकाओं में विश्लेषक के रूप में भी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं, जहाँ वे समकालीन कला, समाज और संस्कृति पर अपने गहरे दृष्टिकोण साझा करते हैं। उनके लेख और विश्लेषण कला जगत में एक महत्वपूर्ण आवाज़ के रूप में उनकी पहचान को मज़बूत करते हैं।
सुभाष शर्मा का जीवन और कार्य एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो यह दिखाती है कि कला केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि जीवन जीने और दूसरों से जुड़ने का एक संवेदनशील और शक्तिशाली माध्यम है। उन्होंने जीवन के हर रंग को अपनी कला में उतारा है, चाहे वह संघर्ष हो, प्रेम हो, पीड़ा हो या सौंदर्य। उनकी कलम और ब्रश दोनों ने समाज को नई दृष्टि दी है और यह कार्य अनवरत जारी है। नवी मुंबई के कलांबोली में स्थित ‘स्केच मल्टीमीडिया’ से संचालित उनका रचनात्मक संसार भविष्य में भी कला प्रेमियों और समाज के लिए प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना रहेगा। उनका सफ़र दर्शाता है कि कला के माध्यम से कैसे व्यक्ति अपने आसपास के विश्व को समझ सकता है और उसे सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।