स माज के आकाश में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो अपने अस्तित्व से न केवल अपनी राह रोशन करते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन को भी आलोकित कर जाते हैं। डॉ. अपर्णा राय उन्हीं गिने-चुने व्यक्तित्वों में से एक थीं, जिनकी शिक्षा, सेवा और सृजन की त्रिवेणी ने असंख्य जीवनों को छुआ। वे ‘अबला’ नहीं, ‘सबला’ और ‘प्रबला’ थीं—एक ऐसी नारी शक्ति, जिनकी जीवटता, संवेदनशीलता और कर्मठता ने उन्हें युगद्रष्टा बना दिया। उनका जीवन एक ऐसा सजीव उदाहरण है, जिसमें नारीत्व, नेतृत्व और नवाचार का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
शिक्षा: ज्ञान की अविरल धारा
डॉ. अपर्णा राय का जीवन शिक्षा के प्रति अगाध समर्पण का पर्याय था। उनका मानना था कि शिक्षा केवल डिग्रियों तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन को दिशा देने वाली वह शक्ति है, जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर, जागरूक और संवेदनशील बनाती है। वे अपने विद्यार्थियों के लिए केवल एक शिक्षिका नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरक और सच्ची मित्र थीं। उनके पढ़ाने का अंदाज इतना सहज और सरस था कि कठिन से कठिन विषय भी विद्यार्थियों के लिए सरल हो जाते थे।
उनकी कक्षा में ज्ञान का दीपक जलता था, जहाँ जिज्ञासा की लौ कभी मंद नहीं पड़ती थी। वे शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रखती थीं, बल्कि जीवन के विविध रंगों, सामाजिक सरोकारों और मानवीय मूल्यों से जोड़कर प्रस्तुत करती थीं। उनका मानना था—”शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं, बल्कि एक अच्छा इंसान बनना है।”
सेवा: करुणा और संवेदना की मिसाल
डॉ. अपर्णा राय का जीवन सेवा की भावना से ओतप्रोत था। उनका हृदय करुणा, प्रेम और संवेदना की अजस्र धारा से सिंचित था। वे मानती थीं कि सच्ची शिक्षा वही है, जो सेवा के मार्ग पर ले जाए। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय समाज के वंचित, शोषित और जरूरतमंद वर्ग की सेवा में लगाया। उनका सेवा भाव किसी दिखावे या प्रचार के लिए नहीं, बल्कि आत्मसंतोष और मानवीय कर्तव्य के लिए था।
उनकी सेवा यात्रा जिला साक्षरता वाहिनी से शुरू होकर लायंस क्लब के अंतर्राष्ट्रीय मंच तक पहुँची। उन्होंने नारी जागरण, बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, वृक्षारोपण, रक्तदान, नेत्रदान, दहेज उन्मूलन, बाल विवाह विरोध, मद्य निषेध आदि अनेक अभियानों में सक्रिय भागीदारी निभाई। वे सेवा को केवल दान या सहायता नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानती थीं।
सृजन: साहित्य और संस्कृति की साधिका
डॉ. अपर्णा राय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे न केवल एक शिक्षिका और समाजसेविका थीं, बल्कि एक सशक्त साहित्यकार भी थीं। उनका लेखन सामाजिक सरोकारों, मानवीय संवेदनाओं और नारी चेतना से ओतप्रोत था। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती थीं और साहित्यिक गोष्ठियों में वे अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती थीं।
उनकी लेखनी में समाज की पीड़ा, नारी की व्यथा, जीवन के संघर्ष और आशा की किरणें झलकती थीं। वे मानती थीं कि साहित्य समाज का दर्पण है, जो न केवल यथार्थ को उजागर करता है, बल्कि परिवर्तन की प्रेरणा भी देता है। उनका साहित्यिक योगदान समाज को जागरूक, संवेदनशील और सृजनशील बनाने में सहायक रहा।
बहुमुखी प्रतिभा: ‘गागर में सागर’ का जीवंत उदाहरण
डॉ. अपर्णा राय की बहुमुखी प्रतिभा का कोई सानी नहीं था। वे एक साथ शिक्षिका, प्रशासक, समाजसेविका, साहित्यकार, मार्गदर्शक, प्रेरक और नेतृत्वकर्ता थीं। उनकी कार्यक्षमता, नेतृत्व कौशल और मानवीय संवेदनाएँ उन्हें भीड़ से अलग करती थीं। वे ‘गागर में सागर’ और ‘बिंदु में सिंधु’ की सजीव प्रतिमूर्ति थीं। उनका आदर्श वाक्य ‘अहर्निश सेवामहे’ था, जिसे उन्होंने अपने जीवन में पूरी निष्ठा से निभाया।
कुशल प्रशासक: भावनाओं में दृढ़ता का संगम
अक्सर यह धारणा रहती है कि भावुक व्यक्ति अच्छा प्रशासक नहीं हो सकता, लेकिन डॉ. अपर्णा राय ने इस मिथक को तोड़ा। वे अपनी भावनाओं को सद्भावनाओं से जोड़कर प्रशासनिक कार्यों को कुशलता से संभालती थीं। गोविंदपुर महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्य के रूप में उन्होंने संस्थान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनके नेतृत्व में महाविद्यालय ने शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं।
वे निर्णय लेने में दृढ़, कार्यान्वयन में तत्पर और संवाद में सहज थीं। उनके नेतृत्व में महाविद्यालय का वातावरण परिवार जैसा बना रहा, जहाँ हर सदस्य को सम्मान, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता था। वे अपने अधीनस्थों और विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत थीं।
सामाजिक योगदान: समाज को नई दिशा
डॉ. अपर्णा राय का सामाजिक योगदान बहुआयामी था। वे समाज की जड़ों तक पहुँचीं और वहाँ बदलाव की अलख जगाई। 1992 में जिला साक्षरता वाहिनी के माध्यम से उन्होंने अशिक्षितों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। ‘आवर ड्रीम, धनबाद ग्रीन’ अभियान में उनकी सक्रिय भूमिका ने पर्यावरण संरक्षण को जन आंदोलन बना दिया। वे मानती थीं कि समाज की प्रगति के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता का समन्वित विकास आवश्यक है।
उन्होंने लायंस क्लब के माध्यम से समाज के हर वर्ग तक सेवा पहुँचाई। छोटे शहरों और कस्बों में लायंस क्लब की शाखाएँ स्थापित कर उन्होंने सेवा के दायरे को विस्तृत किया। रक्तदान, नेत्रदान, वस्त्र वितरण, स्वास्थ्य शिविर, महिला सशक्तिकरण, बाल अधिकार, पर्यावरण संरक्षण जैसे अनेक क्षेत्रों में उनका योगदान अनुकरणीय रहा।
लायंस क्लब: अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान
लायंस क्लब से जुड़ने के बाद डॉ. अपर्णा राय की सेवा यात्रा ने अंतर्राष्ट्रीय आयाम ग्रहण किया। वे ‘डिस्टिक गवर्नर’ के पद तक पहुँचीं और लायंस क्लब के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कार्यक्षमता, नेतृत्व और सेवा भावना के कारण उन्हें देश-विदेश में सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए। उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया और भारतीय नारी शक्ति का परचम लहराया।
इन उपलब्धियों के बावजूद उनकी सादगी, सरलता और सहजता यथावत बनी रही। वे पद, प्रतिष्ठा या सम्मान को कभी अपने व्यक्तित्व पर हावी नहीं होने देती थीं। उनका मानना था—”सम्मान और पुरस्कार सेवा का परिणाम हैं, लेकिन सेवा स्वयं में सबसे बड़ा पुरस्कार है।”
सेवा का अटूट संकल्प: निरंतरता की मिसाल
डॉ. अपर्णा राय ने सेवा के मार्ग पर कभी रुकना नहीं सीखा। वे लायंस क्लब को केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं रखना चाहती थीं, बल्कि उन्होंने छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण अंचलों में भी सेवा का विस्तार किया। उन्होंने साधनहीन, असहाय और जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, महिला सशक्तिकरण आदि के शिविर आयोजित किए। उनका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक सहायता पहुँचाना था।
उनकी सक्रियता और समर्पण के कारण सरकार ने उन्हें विशिष्ट महिला के रूप में सम्मानित किया। वे समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बन गईं।
सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रियता: सेवा का अनवरत प्रवाह
सेवानिवृत्ति डॉ. अपर्णा राय के लिए केवल एक औपचारिकता थी। सेवा का व्रत लेने वाले के लिए विश्राम की कोई जगह नहीं होती। गोविंदपुर शिक्षण-प्रशिक्षण महाविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यों में सक्रिय रहीं। अल-इकरा शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में शैक्षणिक प्रभारी के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएँ जारी रखीं। उनके अनुभव और शिक्षण कला का लाभ संस्था को मिला।
पारिवारिक जीवन: संतुलन और सहयोग का उदाहरण
डॉ. अपर्णा राय ने अपने सार्वजनिक जीवन की व्यस्तताओं के बावजूद परिवार और गृहस्थी का संतुलन बनाए रखा। उनके जीवनसाथी डॉ. शिरीष सुमन भी समान विचारधारा के थे और हर कदम पर उनका साथ निभाते रहे। दोनों ने मिलकर सेवा, शिक्षा और समाज के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उनका पारिवारिक जीवन सहयोग, समझदारी और प्रेम का आदर्श उदाहरण रहा।
सरलता, संवेदनशीलता और नेतृत्व: व्यक्तित्व की पहचान
डॉ. अपर्णा राय की सरलता, संवेदनशीलता, परोपकारिता और वैचारिक परिपक्वता उनके व्यक्तित्व की पहचान थी। वे ग्रामीण गोविंदपुर क्षेत्र के विकास के लिए सदैव तत्पर रहीं। नारी जागरण और जनचेतना अभियान की वे अग्रदूत थीं। उनकी ओजस्विनी वाणी में ऊर्जा, जोश और प्रभावोत्पादकता थी, जिससे कठिन कार्य भी सरल हो जाते थे। विवादों को सुलझाने में वे निपुण थीं और उनके नेतृत्व में संस्था और समाज ने नई ऊँचाइयाँ छुईं।
प्रेरणा का स्रोत: युगद्रष्टा की विरासत
डॉ. अपर्णा राय का जीवन एक ऐसी प्रेरणा है, जो आज भी असंख्य लोगों को आगे बढ़ने, समाज सेवा करने और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। वे रोग-शोक और उम्र की सीमाओं को पार कर अंतिम समय तक यौवन की ऊर्जा से लबरेज़ रहीं। उनकी थकान कभी उनके निकट नहीं आई और वे अपने चुने मार्ग पर निरंतर चलती रहीं।
एक अमर ज्योति
डॉ. अपर्णा राय का जीवन एक अमर ज्योति की तरह है, जो शिक्षा, सेवा और सृजन के पथिकों को सदैव प्रकाश देती रहेगी। वे केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन, एक प्रेरणा हैं। उनका जीवन संदेश देता है कि नारी शक्ति, जब शिक्षा, सेवा और सृजन के पथ पर अग्रसर होती है, तो वह समाज को नई दिशा और ऊँचाई दे सकती है।
उनकी स्मृति में यह पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं—
“दीप से दीप जलते रहें,
प्रेरणा की लौ कभी मंद न हो,
सेवा, शिक्षा और सृजन की त्रिवेणी
हर युग में प्रवाहित होती रहे।”