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साहित्य, संस्कृति, कला

कविता – विनोद आनंद की कविताएं

Byadmin

Oct 12, 2022
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विनोद आनंद की कविताएं

1

        रघु की पीड़ा

 

 

शोषण और भूख
से त्रस्त रघु
झेलता है त्रासदी
जिंदगी जीने के लिए
करता है कठोर परिश्रम

मुह चिढ़ाता है
अच्छे दिनों का आगाज
भूख से ब्याकुल रघु
एकटक लगाये रखता
मालकिन की दो रोटी पर

मालकिन को है हड़बड़ी
है किटी पार्टी में जाने की

भूल जाता हर रोज रघु के लिए रोटी परोसना
हर शाम नशे में धुत मालकिन
करता आदेश
रघु ये करो…..वह करो
लाचार रघु भूख से ब्याकुल होकर भी नहीं
मांग पाता एक टुकड़ा रोटी का

उसकी विवशता ,उसकी भूख
और उसकी पीड़ा
उसे करता है विचलित

नहीं पसीसता है मालकिन का मन
रघु का भूख से
गल गई रघु के शरीर का मांस
हड्डी का रह गया है ढांचा
फिर भी क्यों नहीं दिखता है उसकी यह स्थति

रघु नहीं जानता है कंप्यूटर
नहीं बना उसका आधार कार्ड
नहीं मिलता सस्ती राशन
नहीं मिलना चाहता है उस से
वह अधिकारी
जिसके पास जाता वह
बनकर फरियादी

किया करे रघु ।
आज भूख से
एक चौराहे पर रघु की उड़ गए प्राण पखेरू
जब तक रघु जिन्दा था
नहीं दिखी किसी को उसकी भूख
नहीं दिखा उसका क्षीण काया
नहीं दिखा उसका दर्द

आज मरने के बाद छपी अखबार में रपट
भूख से मर गया रघु ..!

नेताओं का आ रहा है बयान
कोस रहे हैं लोग सरकार को
मुख्यमंत्री ने बनाया जाँच टीम
अफसर कह रहा है रघु था बीमार

रघु का नहीं है कोई वारिश
मालकिन ही बन गयी उसका रिश्तेदार

आज रघु के नाम पर हो रही है राजनीती
रघु अब बन गया है लोंगो के लिए
एक मुद्दा

रघु जीते जी किया मालकिन की सेवा

अब कर रहा नेताओं का भरण पोषण

वाह रघु तुम मरकर भी दे गया
कई लोंगो को राशन पानी

             2 

अनंत की राह की डगर पर

(नेता जी मुलायम सिंह जी के लिए श्रद्धा के दो शब्द)

हे प्रभु….!

जीवन के कठिन सफर
को पार कर…..
नेता जी का कदम
बढ़ रह है उस डगर पर
क्षितिज के पार
जहां न माया है ना मोह
उस अनंत सफर में
तुम रखना उनका ख्याल

लाखों लोगों के थे वे सहारा,
उन सब का प्यार
बह रहा है
आज बनकर आंसुओं का धार।

तुम उस धार का
लाज रख लेना
बनकर सहारा
सफर उनका
आसान कर देना..!

पता नही है
क्या है तुम्हारी माया..?
जब इस धरा पर भेजते हो
किसी महापुरुष को..!

लोगों के दिलों में
संजोते हो उनकी प्यारी छवि
उसके ऊर्जा से करते हो
समस्त मानव समुदाय में
ऊर्जावान।

लोगों के दिलों में उनके लिए
जगाते हो प्यार
श्रद्धा और विश्वास।

फिर जब बांध देते हो मोहपाश में
फिर–
क्यों करते हो यह उन्हें छीन कर
यह अत्याचार..?

जानता हूँ, धन बैभव,सोहरत और प्रभाव..
सब तुम्हारे शक्ति के आगे
है..लाचार..!
फिर भी कहता हूं प्रभु
जब हमें थी उनकी जरूरत
सत्ता और शियासत के
भटकते राह को
पटरी पर लाने के लिए।

पूँजीबाद के उगते सूर्य की तपिश
पर शीतल समाजवाद का
परचम लहराने का

ऐसे समय में जब जरूरत थी
नेताजी के सहारे की
तो अनंत डगर पर
बुला लिया आपने

बस गुजारिश है आप से
मेरे श्रद्धा के दो बूंद
इस अश्रुकण को
पहुंचा देंना उन तक
और जब वे थक जाएं
चलते चलते तो देना उनके
हाथ को थाम कर सहारा उन्हें।
उस अनंत सफर में..
चिर काल तक….!!

 

By admin

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