लघुकथा
रंजना वर्मा उन्मुक्त
सुलेखा अपने पोते की चाँदी की कटोरी को खोज-खोज कर परेशान हो रही थी । अभी तो इसी टेबल पर रखी थी… कहाँ गई । आजकल वह चीजें रख कर भूल जाती थी। पर उसे यह पक्का याद था कि कटोरी उसने टेबल पर ही रखी थी ।
…क्या, कहीं कामवाली ने तो नहीं ले लिया! …उसके दिमाग में यह ख्याल आया । लेकिन उसने इस ख्याल को तुरंत ही झटक दिया । उसके इसी शक करने की वजह से उसकी पुरानी कामवाली को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी थी ।
उस घटना को याद कर आज भी उसका हृदय ग्लानि से भर उठता है। उसका खानदानी हार घर में ही गुम हो गया था। न चाहते हुए भी उसका शक अपनी नौकरानी पर होने लगा था। घर में उसके सिवा कोई आया भी नहीं था । वह हार कीमती होने के साथ-साथ खानदानी भी था। हर बार उससे पूछने पर वह इनकार करती और रोती हुई खुद को निर्दोष कहती।
सुलेखा का दिल कहता कि वह निर्दोष है,क्योंकि आज तक घर से एक सुई भी गायब नहीं हुई थी। लेकिन, उसकी सहेलियों का कहना था कि हार देखकर किसी का भी ईमान डोल सकता है ।
सहेलियों की बातों में आकर उसने पुलिस को खबर कर दिया । बेचारी नौकरानी को एक रात जेल में गुजारनी पड़ी। बाद में कोई सबूत नहीं होने पर उसे छोड़ दिया गया। लेकिन उस पर चोरनी का लेवल लग चुका था। जहाँ-जहाँ वह काम करती थी, सभी ने उसे काम से निकाल दिया ।
कुछ दिनों पश्चात ही, जब सुलेखा अपना अलमीरा ठीक कर रही थी तो उसे अपना वही खानदानी हार अलमीरा में नीचे पड़ा मिला । उसे हार को देखकर जितनी खुशी हुई उससे ज्यादा अपनी नौकरानी पर शक करने का पछतावा हुआ। उस गरीब ने जिस तकलीफ को सहा, साथ ही अपनी जो इज्जत खोई वह अब वापस नहीं आ सकती थी।
इस घटना के बाद से उसने गाँठ बांध लिया था कि वह अब किसी पर बेवजह शक नहीं करेगी। उसने झाड़ू लगाती हुई अपनी नई नौकरानी से कहा, “मेरे पोते की चाँदी की कटोरी नहीं मिल रही है ,तुम्हें मिलेगा तो बताना”।
” जी मेम साब।”… वह बोली।जब उसका काम खत्म हो गया तो वह बोली,” मैं जा रही हूं मेम साब, दरवाजा बंद कर लो।”
सुलेखा दरवाजा बंद करने आई । नौकरानी ने कमर में खोंसी हुई पल्लू को ज्यों ही सीधा किया… चाँदी की कटोरी पल्लू से आजाद होकर जमीन पर गिर पड़ी।
” तुम जैसे चंद लोगों की वजह से ही ईमानदार लोग मारे जाते हैं ।”…गुस्से से बोलती हुई सुलेखा ने चाँदी की कटोरी को उठा लिया।
Very realistic and interesting story…
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लघुकथा :- चाँदी की कटोरी – अंतर्कथा पत्रिका
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